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[मूलाचारे च। इतोऽस्मादन्यो ग्रन्थः कल्प्यते पठितुमस्वाध्यायेऽन्यत्पुनः सूत्रं कालशुद्धयाद्यभावेऽपि युक्तं पठितुमिति ॥२७८॥
कि तदन्यत्सूत्रमित्यत आह
बाराहणणिज्जुत्ती मरणविभत्ती य संगहत्थुदिओ।
पच्चक्खाणावासयधम्मकहाओ य एरिसप्रो ॥२७॥
आराधना सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपसामुद्योतनोद्यवननिर्वाहणसाधनादीनि तस्या नियुक्तिराराधनानिर्यक्तिः । मरणविभक्तिः सप्तदशमरणप्रतिपादकग्रन्थरचना। संग्रहः पंचसंग्रहादयः । स्तुतयः देवागमपरमेष्ठचादयः। प्रत्याख्यानं त्रिविध चतुर्विधाहारदिपरित्यागप्रतिपादनो ग्रन्थः सावद्यद्रव्यक्षेत्रादिपरिहारप्रतिपादनो वा । आवश्यका: सामायिकचतुर्विशतिस्तववन्दनादिस्वरूपप्रतिपादको ग्रन्थः । धर्मकथास्त्रिषष्ट्रिशलाकापुरुषचरितानि द्वादशानुप्रेक्षादयश्च । ईदृग्भूतोऽन्योऽपि ग्रन्थः पठितुमस्वाध्यायेऽपि च युक्तः ॥२७॥
कालशुद्धयनन्तरं कस्मिन् ग्रन्थे कस्मिंश्चावसरे काः क्रियाः कर्तव्या इति पृष्टेऽत आह
करना यूक्त नहीं है किन्तु इन सूत्रग्रन्थों से अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों को कालशद्धि आदि के अभाव में भी पढ़ा जा सकता है ऐसा समझना।
इनसे भिन्न अन्य सूत्रग्रन्थ कौन-कौन से हैं ? ऐसा पूछने पर कहते हैं
गाथार्थ--आराधना के कथन करने वाले ग्रन्थ, मरण को कहने वाले ग्रन्थ, सग्रह ग्रन्थ, स्तुतिग्रन्थ, प्रत्याख्यान, आवश्यक क्रिया और धर्म कथा सम्बन्धी ग्रन्थ तथा और भी ऐसे हो ग्रन्थ अस्वाध्याय काल में भी पढ़ सकते हैं ॥२७॥
प्राचारवत्ति--सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप-इन चारों के उद्योतन. उद्यवन. निर्वाहण, साधन और निस्तरण आदि का वर्णन जिन ग्रन्थों में है वे आराधनानियुक्ति ग्रन्थ हैं। सत्रह प्रकार के मरणों के प्रतिपादक ग्रन्थों की जो रचना है वह मरणविभक्ति है। संग्रह ग्रन्थ से 'पंचसंग्रह' आदि लिये जाते है । स्तुतिग्रन्थ से देवागमस्तोत्र, पंचपरमेष्ठीस्तोत्र आदि सम्बन्धी ग्रन्थ होते हैं। तीन प्रकार और चार प्रकार आहार के त्याग के प्रतिपादक ग्रन्थ प्रत्याख्यान ग्रन्थ हैं। अथवा सावद्य-सदोष द्रव्य, क्षेत्र, आदि के परिहार करने के प्रतिपादक ग्रन्थ प्रत्याख्यान ग्रन्थ हैं। सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना आदि के स्वरूप को कहनेवाले ग्रन्थ आवश्यक ग्रन्थ हैं। त्रेसठ शलाकापुरुषों के चरित्र को कहनेवाले ग्रन्थ तथा द्वादश अनुप्रेक्षा आदि ग्रन्थ धर्मकथा ग्रन्थ हैं । इन ग्रन्थों को और इन्हीं सदृश अन्य ग्रन्थों को भी अस्वाध्याय काल में पढ़ा जा सकता है।
विशेषार्थ-वर्तमानकाल में षट्खंडागम सूत्र, कसायपाहुड़ सूत्र और महाबंध सूत्र अर्थात धवला, जयधवला और महाधवला को सूत्रग्रन्थ माना जाता है। चूंकि श्री वीरसेनाचार्य ने धवला, जयधवला टीका में इन्हें सूत्र सदृश मानकर सूत्र-ग्रन्थ कहा है। इनके अतिरिक्त ग्रन्थों को अस्वाध्याय काल में भी पढ़ा जा सकता है।
कालशुद्धि के अनन्तर किस ग्रन्थ के विषय में और किस अवसर पर क्या क्रियाएँ करना चाहिए ? ऐसा पूछने पर कहते हैं
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