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[मूलाचारे कालशुद्धयां' यद्यत्सूत्रं पठ्यते तत्तत्केनोक्तमत आह
सुत्तं गणहरकहिदं तहेव पत्त यबुद्धिकहिदं च ।
सुदकेवलिणा कहिदं अभिण्णदसपुवकहिदं च ॥२७७॥
व्यन्तरों द्वारा भेरी ताड़न करने पर, उनकी पूजा का संकट होने पर, कर्षण के होने पर, चाण्डाल बालकों के द्वारा समीप में झाडू-बुहारी करने पर ; अग्नि, जल व रुधिर की तीव्रता होने पर तथा जीवों के मांस व हड्डियों के निकाले जाने पर क्षेत्र विशुद्धि नहीं होती, जैसा कि सर्वज्ञों ने कहा है।
मुनि क्षेत्र की शुद्धि करने के पश्चात् अपने हाथ और पैरों को शुद्ध करके तदनन्तर 7 विशुद्ध मन युक्त होता हुआ प्रासुक देश में स्थित होकर वाचना को ग्रहण करे। बाजू, काँख
आदि अपने अंग का स्पर्श न करता हुआ उचित रीति से अध्ययन करे और यत्नपूर्वक अध्ययन करके, पश्चात् शास्त्रविधि से वाचना को छोड़ दे। साधुओं ने बारह तपों में भी स्वाध्याय को श्रेष्ठ तप कहा है।
पर्व दिनों में नन्दीश्वर के श्रेष्ठ महिम दिवसों—आष्टाह्निक दिनों में और सूर्य चन्द्र का ग्रहण होने पर विद्वान् व्रती को अध्ययन नहीं करना चाहिए।
अष्टमी में अध्ययन गुरु और शिष्य दोनों के वियोग को करता है । पौर्णमासी के दिन किया गया अध्ययन कलह और चतुर्दशी के दिन किया गया अध्ययन विघ्न को करता है। यदि साधु जन कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या के दिन अध्ययन करते हैं तो विद्या और उपवास
ब विनाश को प्राप्त हो जाते हैं। मध्याह्न काल में किया गया अध्ययन जिन रूप को नष्ट करता है। दोनों संध्याकालों में किया गया अध्ययन व्याधि को करता है तथा मध्यम रात्रि में किये गये अध्ययन से अनुरक्त जन भीद्वष को प्राप्त हो जाते हैं।
____ अतिशय दुःख से युक्त और रोते हुए प्राणियों को देखने या समीप में होने पर, मेघों की गर्जना व विजली के चमकने पर और अतिवृष्टि के साथ उल्कापात होने पर अध्ययन नहीं करना चाहिए।
...सूत्र और अर्थ की शिक्षा के लोभ से जो मुनि द्रव्य-क्षेत्र आदि की शुद्धि को न करके अध्ययन करते हैं वे असमाधि अर्थात् सम्यक्त्व की विराधना, अस्वाध्याय-शास्त्र आदिकों का अलाभ, कलह, व्याधि या वियोग को प्राप्त होते हैं।"
___ काल शुद्धि में जो जो सूत्र पढ़े जाते हैं वे वे सूत्र किनके द्वारा कथित होते हैं ? इसका उत्तर देते हैं
गाथार्थ--गणधर देव द्वारा कथित, प्रत्येकवुद्धि ऋद्धिधारी द्वारा कथित, श्रुतकेवली द्वारा कथित और अभिन्न दशपूर्वी ऋषियों द्वारा कथित को सूत्र कहते हैं ॥२७७।।
१ क 'दया।
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