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पंचाचाराधिकारः]
[३०५ हिदमिदपरिमिदभासा अणुवीचीभाषणं च बोधव्वं ।
प्रकुसलमणस्स रोधो कुसलमणपवत्तो चेव ॥३८३॥
हितभाषणं मितभाषणं परिमितभाषणमनुवीचिभाषणं च । हितं धर्मसंयुक्तं । मितमल्पाक्षरं वह्वर्थ । परिमितं कारणसहितं । अनुवीचीभाषणमागमाविरुद्धवचनं चेति चतुर्विधो वचनविनयो ज्ञातव्यः । तथाऽ कुशलमनसो रोधः पापादानकारकचित्तनिरोधः । कुशलमनसो धर्मप्रवृत्तचित्तस्य प्रवर्तकश्चेति द्विविधो मनोविनय इति ॥३८३॥
स एवं द्विविधो विनयः साधुवर्गेण कस्य कर्तव्य इत्याशंकायामाह
रादिणिए उणरादिणिएसु अ अज्जासु चेव गिहिवरगे।
विणओ जहारिप्रो सो कायव्वो अप्पमत्तेण ॥३८४॥
रादिणिए-रात्र्यधिके दीक्षागुरौ श्रुतगुरौ तपोधिके च। उणरादिणिएसु य-ऊनरात्रिकेषु च तपसा कनिष्ठेषु गुणकनिष्ठेषु वयसा कनिष्ठेषु च साधुषु । अज्जासु-आर्यिकासु । गिहिवग्गे-गृहिवर्गे
गाथार्थ-हितवचन, मितवचन, परिमितवचन और सूत्रानुसार वचन, इन्हें वाचिक विनय जानना चाहिए । अशुभ मन को रोकना और शुभ मन की प्रवृत्ति करना ये दो मानसिक विनय हैं ॥३८३॥
__ आचारवृत्ति-हित भाषण-धर्मसंयुक्त वचन बोलना, मित भाषण—जिसमें अक्षर अल्प हों अर्थ बहुत हो ऐसे वचन बोलना, परिमित भाषण-कारण सहित वचन बोलना अर्थात् बिना प्रयोजन के नहीं बोलना, अनुवीचिभाषण-आगम से अविरुद्ध वचन बोलना, इस प्रकार से वचन विनय चार प्रकार का है । पाप आस्रव करनेवाले अशुभ मन का रोकना अर्थात मन में अशुभ विचार नहीं लाना तथा धर्म में चित्त को लगाना ये दो प्रकार का मनोविनय है।
यह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप दोनों प्रकार का विनय साधुओं को किनके प्रति करना चाहिए ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं
गाथार्थ–एक रात्रि भी अधिक गुरु में, दीक्षा में एक रात्रि न्यून भी मुनि में, आर्यिकाओं में और गृहस्थों में अप्रमादी मुनि को यथा योग्य यह विनय करना चाहिए ॥३८४॥
आचारवत्ति-जो दीक्षा में एक रात्रि भी बड़े हैं वे रात्र्यधिक गुरु हैं। यहाँ राज्यधिक शब्द से दीक्षा गुरु, श्रुतगुरु और तप में अपने से बड़े गुरुओं को लिया है। जो दीक्षा से एक रात्रि भी छोटे हैं वे ऊनरात्रिक कहलाते हैं । यहाँ पर ऊनरात्रिक से जो तप में कनिष्ठ-लघु हैं, गुणों में लघु हैं और आयु में लघु हैं उन साधुओं को लिया है। इस प्रकार से दीक्षा आदि बड़े गुरुओं फलटन से प्रकाशित प्रति में कुछ अन्तर है
हिदमिदमत्वअणुवीचिभासणो वाचिगो हवे विणओ।
असुहमणसण्णिरोहो सुहमणसंकप्पगो तदिओ ॥
अर्थात् हितभाषण, मितभाषण, मृदुभाषण और आगम के अनुकूल भाषण यह वाचिक विनय है। अशुभमन का निरोध करना और शुभ में मन लगाना ये दो मानसिक विनय के भेद हैं।
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