________________
पंचाचाराधिकारः]
[२६७ लोकयेत्। विनयपूर्वकं विधृतस्तिष्ठेत् । सम्यविधानेन दीयमानमाहारं प्रासुकं सिद्धभक्ति कृत्वा प्रतीच्छेत् । स (श) तनपतनगलनमकुर्वन् निश्छिद्र पाणिपात्र नाभिप्रदेशे कृत्वा शुरशुरशब्दादिवजितं भुजीत । योषितां स्तनजघनोरुनाभिकटिनयनललाट मूखदन्तौष्ठबाहकक्षान्तरजंघापादलीलागतिविलासगीतनत्तहालस्निग्धदष्टिकटाक्षनिरीक्षणादीन्नावलोकयेत् । एवं भुक्त्वा पूर्णोदरोऽन्तरायादपूर्णोदरो वा मुखहस्तपादान् प्रक्षाल्य शुद्धोदकपूर्णा कुण्डिकां गृहीत्वा निर्गच्छेत् । धर्मकार्यमन्तरेण न गृहान्तरं प्रविशेत् । एवं जिनालयादिप्रदेशं सम्प्राप्य प्रत्याख्यानं गृहीत्वा प्रतिक्रामेदिति ॥३१८॥
आदाननिक्षेपणसमितिस्वरूपं प्रतिपादयन्नाह---
प्रादाणे णिक्खेवे पडिलेहिय चखणा पमज्जेज्जो।
दव्व च दवठाणं संजमलद्धीए सो भिक्खू ॥३१६॥ भक्ति से दिये गये प्रासुक आहार को सिद्धभक्ति करके (सिद्धभक्ति पूर्वक पूर्व दिन गृहीत प्रत्याख्यान का निष्ठापन करके) ग्रहण करे। नीचे भोज्य वस्तु आदि न गिराते हुए या पेय वस्तु न झराते-गिराते हुए छिद्र रहित अपने पाणिपात्र को नाभि प्रदेश के पास करके शुर-शुर शब्द आदि को न करते हुए आहार करे । स्त्रियों के स्तन, जघन, घुटनों, नाभि, कमर, नेत्र, ललाट, मुख, दाँत, ओठ, काँख, जंघा, पैर आदि अवयवों का या उनके लीलापूर्वक गमन, विलास, गीत, नृत्य, हास्य,स्नेह दृष्टि, कटाक्षपूर्वक देखना आदि चेष्टाओं का अवलोकन न करे ।
इस प्रकार पूर्ण उदर आहार करके अथवा अन्तराय आ जाने पर अपूर्ण उदर आहारकरके, मुख-हाथ-पैरों का प्रक्षालन करके,शुद्ध प्रासुक जल से भरे हुए कमण्डलु को लेकर आहार, गृह से निकले। धर्म कार्य के बिना अन्य किसी के घर में प्रवेश न करे। इस तरह से जिनालय आदि स्थान में आकर प्रत्याख्यान ग्रहण करके गोचर प्रतिक्रमण करे।
विशेष-मध्याह्न की सामायिक करके १२ बजे के बाद मुनि आहारार्थ निकलें। यहाँ ऐसा आदेश है, किन्तु वर्तमान में साधु ६ बजे से लेकर ११ बजे तक आहारार्थ निकलते हैं, पश्चात् आहार के बाद मध्याह्न की सामायिक करते हैं ऐसी परम्परा चल रही है। वर्तमान में श्रावकों के भोजन की दो बेलाएँ हैं--प्रातः और सायं (सूर्यास्त से पहले तक)। प्रातः की भोजनबेला प्रायः 8 बजे से ११ बजे है तथा सायं को ४ बजे से सूर्यास्त तक। यही कारण है कि साध प्रातः को भोजनबेला में आहारार्थ निकलते हैं। कदाचित विशेष प्रसंगवश यदि प्रातः नहीं निकले हैं तो मध्याह्न सामायिक के उपरान्त सूर्यास्त से तीन घटिका पहले तक भी निकलते हैं क्योंकि सूर्योदय से तीन घड़ी बाद और सूर्यास्त से तीन घड़ी पहले तक साधु दिन में एक बार ही आहार ग्रहण करें ऐसा इसी मूलाचार की गाथा ३५ में कहा है । अतः आहार के लिए भी यदि प्रातः नहीं निकले हैं तो मध्याह्न सामायिक के बाद निकलते हैं ऐसा देखा जाता है।
अब आदान-निक्षेपण समिति का स्वरूप कहते हैं
गाथार्थ-संयमलब्धि से सहित वह भिक्ष ग्रहण करते और रखते समय वस्तु को और उसके स्थान को चक्ष से देख कर पुनः पिच्छी से परिमाजित करे ।।३१६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org