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[मूलाचारे कृत्वा घटिकाद्वयेऽतिक्रान्ते श्रृतभक्तिगुरुभक्तिपूर्वकं स्वाध्यायं गृहीत्वा वाचनापृच्छनानुप्रेक्षापरिवर्तनादिक सिद्धान्तादेविधाय घटिकाद्वयमप्राप्त'मध्याह्नादरात् स्वाध्यायं श्रुतभक्तिपूर्वकमुपसंहृत्यावसथो' दूरतो मूत्रपूरीषादीन कृत्वा पूर्वापरकायविभागमवलोक्य हस्तपादादिप्रक्षालनं विधाय कुण्डिकां पिच्छिकां गृहीत्वा मध्याह्नदेववन्दनां कृत्वा पूर्णोदरबालकान् भिक्षाहारान् काकादिवलीनन्यानपि लिंगिनो भिक्षावेलायां ज्ञात्वा प्रशान्ते धूममुशलादिशब्दे गोचरं प्रविन्मुनिः । तत्र गच्छन्नाति तं, न मन्दं, न विलम्बितं गच्छेत् । ईश्वरदरिद्रादिकुलानि न विवेचयेत् । न वर्त्मनि जल्पेत्तिष्ठेत् । हास्यादिकान् विवर्जयेत् । नीचकुलेषु न प्रविशेत् । सूतकादिदोषदूषितेषु शुद्धेष्वपि कुलेषु न प्रविशेत् । द्वारपालादिभिनिषिद्धो न प्रविशेत् । यावन्तं प्रदेशमन्ये भिक्षाहाराः प्रविशन्ति तावन्तं प्रदेशं प्रविशेत् । विरोधनिमित्तानि स्थानानि वर्जयेत् । दुष्टखरोष्ट्रमहिषगोहस्तिव्यालादीन् दूरतः परिवर्जयेत् । मत्तोन्मत्तमदावलिप्तान् सुष्ठु वर्जयेत् । स्नानविलेपनमण्डनरतिक्रीडाप्रशक्ता योषितो नावं
सूर्योदय होने पर देववन्दना करके दो घड़ी (४८ मिनट) के बीत जाने पर श्रुतभक्ति, गुरुभक्ति पूर्वक स्वाध्याय ग्रहण करके सिद्धान्त आदि ग्रन्थों की वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा और परिवर्तन आदि करके मध्याह्न काल से दो घड़ी पहले श्रुतभक्तिपूर्वक स्वाध्याय समाप्त कर देवे। पुन: वसतिका से दूर जाकर मल-मूत्र आदि विसर्जित करके अपने शरीर के पर्वापर अर्थात आगे-पीछे के भाग का अवलोकन–पिच्छिका से परिमार्जन करके हस्तपाद आदि का प्रक्षालन करके मध्याह्नकाल की देववन्दना-सामायिक करे अर्थात् मध्याह्न के पहले दो घड़ी जो शेष रही थीं उसमें सामायिक करे । पुनः जब बालक भोजन करके निकलते हैं, काक आदि को बलि (दाने आदि) भोजन डाला जाता है और भिक्षा के लिए अन्य सम्प्रदायवाले साधु भी विचरण कर रहे होते हैं, तथा गृहस्थों के घर में धुआँ और मूसल आदि शब्द शान्त हो चुका होता है अर्थात् भोजन बनाने का कार्य पूर्ण हो चुका होता है, इन सब कारणों से मुनि आहार की बेला जानकर गोचरी के लिए निकले।
उस समय चलते हुए न ही अधिक जल्दी-जल्दी और न अधिक धीरे-धीरे तथा न ही विलम्ब करते हुए चले। धनी और निर्धन आदि के घरों का विचार-भेदभाव न करे । न मार्ग में किसी से बात करे और न ठहरे अर्थात् आहार के लिए निकल कर आहार-ग्रहण कर चुकने तक मौन रहे । मार्ग में हास्य आदि भी न करे, हँसते हुए या अन्य कोई चेष्टा करते हुए न चले। नीच कुलों के घर में प्रवेश न करे और सूतक, पातक आदि दोषों से दूषित शुद्ध कुल वाले घरों में भी नहीं जावे। द्वारपाल आदि के द्वारा रोके जाने पर वहाँ प्रवेश न करे। जितने प्रदेशस्थान तक अन्य लोग भिक्षा के लिए प्रवेश करते हैं, मूनि भी उतने प्रदेश तक प्रवेश करे। जिन स्थानों में आहारार्थ जाने का विरोध है उन स्थानों को छोड़ देवे । दुष्टजन, गधे, ऊँट, भैंस, गाय, सर्प आदि जीवों को दूर से ही छोड़ देवे अर्थात् इनसे दूर से बचकर निकले। मत्त अर्थात् पागल या उन्मत्त अर्थात् मदिरा आदि से उन्मत्त या गविष्ठ जनों को भी बिलकुल छोड़ देवे । स्नान, विलेपन, मण्डन अर्थात् शृंगार या रतिक्रीड़ा में आसक्त हुई महिलाओं का अवलोकन न करे।
श्रावक यदि विनय पूर्वक ठहराये-पड़गाहन करे तो वहाँ ठहरे । सम्यग्विधि-नवधा१ क मप्राप्त मध्याह्नदारात् प० । २ क °वसरोदू ।
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