________________
पंचाचाराधिकारः ]
तथैवासत्यमृषा साष्टमी भाषा । नवमी पुनरनक्षरगता । यस्यां नाक्षराण्यभिव्यक्तानि ककारचकारमकारादीनामनभिव्यक्तिर्यत्र सा नवमी भाषानक्षरगता । सा च द्वीन्द्रियादीनां भवत्येव । सावत्यमृषा भाषा नव प्रकारा
भवति । विशेषाप्रतिपत्तेरसत्या सामान्यस्य प्रतिपत्तेनं मृषा । आमन्त्रणरूपेणाभिमुखीकरणेन न मृषा पश्चा दन्यस्यार्थस्याप्रतिपत्ते रसत्या । तथाज्ञादानेन न मृषा पश्चात्कि दास्यतीति न ज्ञायते तेन न सत्या | तथा याञ्चामात्रेण न मृषा, उत्तरकालं किं याचयिष्यतीति न ज्ञायते ततो न सत्या । तथा प्रश्नमात्रेण न मृषा पश्चान्न ज्ञायते किं पृच्छ्यतेऽनेनेति न सत्या । तथा प्रत्याख्यानसामान्यरूपस्य याचनायाः प्रतीतेर्न मृषा पश्चात्कस्य प्रत्याख्यानं दास्यतीति न ज्ञायते तेन न सत्या । तथेच्छाया एवं करोमीति भणनेन न मृषा किंचित् पश्चात्किं करिष्यतीति न ज्ञायते तेन न सत्या । तथाक्षराणि संदिग्धानि
[२६३
जो इच्छा के अनुकूल है वह इच्छानुलोमा है जो कि सर्वत्र अनुकूल रहती है । जैसे, 'मैं ऐसा करता हूँ ।' इत्यादि ।
इन सभी के साथ भाषा समिति का सम्बन्ध लगा लेना चाहिए अर्थात् ये सातों भेद भाषा समिति के अन्तर्गत हैं ।
जो संशय अर्थात् अव्यक्त अर्थ को कहती है वह संशयवचनी भाषा है ।
अर्थात् जिन सन्देह रूप वचनों से अर्थ की प्रतीति नहीं हो पाती है वे वचन संशयवचनी हैं। जैसे, दाँत रहित अतिबाल और अतिवृद्ध के वचन तथा भैंस आदि पशुओं के शब्द । यह आठवीं भाषा है ।
नवमी भाषा अनक्षरी है। जिसमें ककार चकार मकार आदि अक्षर अभिव्यक्त नहीं हैं, स्पष्ट नहीं हैं वह अनक्षरी भाषा है । यह द्वीन्द्रिय आदि जीवों में तो होती ही है ।
इस प्रकार से असत्यमृषा भाषा के गौ भेद कहे गये हैं ।
इन भाषाओं से विशेष का नहीं हो पाता है अतः इन्हें सत्य भी नहीं कह सकते और सामान्य का ज्ञान होता रहता है अतः इन्हें असत्य भी नहीं कह सकते । इसी कारण 'न सत्यमृषा इति असत्यमृषा' ऐसा नञ समास होने से वह शब्द सत्य और मृषा दोनों का निषेध कर रहा है ।
इस अर्थ को और स्पष्ट करते हैं- आमन्त्रणी भाषा में आमन्त्रण - सम्बोधन रूप से अपनी तरफ अभिमुख करने से यह असत्य नहीं है, पश्चात् किसलिए सम्बोधन किया ऐसा कोई अन्य अर्थ ज्ञात न होने से यह सत्य नहीं है । अतः असत्यमृषा है ।
उसी प्रकार आज्ञापनी में आज्ञा देने से असत्य नहीं है, पश्चात् क्या आज्ञा देंगे यह जाना नहीं जाता है इसलिए सत्य भी नहीं है । वैसे ही याचनी में याचना मात्र से असत्य नहीं है, उत्तर काल में क्या माँगेगा यह नहीं जाना गया है अतः सत्य भी नहीं है । पृच्छना भाषा में प्रश्न मात्र से वह झूठ भी नहीं है, पुनः यह नहीं जाना जाता है कि यह क्या पूछेगा अतः संत्य भी नहीं है । वैसे ही प्रत्याख्यानी भाषा में प्रत्याख्यान सामान्य के त्यागने की प्रतीति होने से असत्य भी नहीं है, पश्चात् किस वस्तु का त्याग देंगे यह नहीं जाना जाता है अतः सत्य भी नहीं है | वैसे ही इच्छानुलोमा में इच्छा के अनुकूल 'मैं ऐसा करता हूँ' कहने से असत्य भी नहीं है, पश्चात् क्या करेगा यह नहीं जाना जाता है अतः सत्य भी नहीं है । वैसे ही अनक्षरगता में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org