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[मूलाचारे
अयाञ्चा अकारोत्र लुप्तो द्रष्टव्यः प्राणात्ययेऽपि रोगादिभिः पीडितस्यायाचयतः अयाञ्चापीडा। अथवा वरं मतो न कश्चिद्याचितव्यः शरीरादिसंदर्शनादिभिः यांचा तु नाम महापीडा। अलाहो--अलाभः अंतरायकर्मोदयादाहाराचलाभकृतपीडा। रोय-रोगो ज्वरकासभगन्दरादिजनितव्यथा । तणफ्फास-तृणस्पर्शः शुष्कतृणपरुषशर्कराकण्टकनिशितमत्तिकाकृतशरीरपादवेदना। जल्ल-सर्वांगीणं मलमस्नानादिजनितप्रस्वेदाधुद्भवा पीडा । सक्कारो-सत्कारः पूजाप्रशंसात्मकः । पुरस्कारो-नमनक्रियारम्भादिष्वग्रतः करणमामंत्रणं । तह चैव-तथा चैव । पण्ण-प्रज्ञा विज्ञानमदोद्भूतगर्वः। परिसह-परीषहः। पीडाशब्दः सर्वत्रापि सम्बध्यते । क्षुत्परिषहः, तृणपरिषहः, दंशमशकपिपीलिकामत्कुणादिभक्षणपरीषह इत्यादि । अण्णाणं-अज्ञानं सिद्धान्तव्याकरणतर्कादिशास्त्रापरिज्ञानोद्भूतमनःसन्तापः। असणं-अदर्शनं महाव्रतानुष्ठानेनाप्यदृष्टातिशयबाधा, उपलक्षणमात्रमेतत् अन्येप्यत्र पीडाहेतवो द्रष्टव्याः। एतैः परीषहैवतायभंगेऽपि संक्लेशकरणं भावविचिकित्सा ।
कुछ भी याचना नहीं करते हुए मुनि के अयाचना-परीषह होती है। यहाँ पर 'याञ्चा' पद में अकार का लोप समझना चाहिए इसलिए याञ्चा शब्द से अयाचाहीहण करना चाहिए। अथवा मरना अच्छा है किन्तु कुछ भी याचना करना बुरा है क्योंकि याचना यह बहुत बड़ा दुःख है ऐसा सोचकर शरीर से या मुख के म्लान आदि किसी संकेत के द्वारा कुछ भी नहीं माँगना यह याञ्चा-परीषहजय है।
१५. अंतराय कर्म के उदय से आहार आदि का लाभ न होने से जो बाधा होती है वह अलाभ परीषह है।
१६. ज्वर, खांसी, भगंदर आदि व्याधियों से हुई पीड़ा रोग-परीषह है।
१७. सूखे तृण, कठिन कंकरीली रेत, काँटा, तीक्ष्ण, मिट्टी आदि से जो शरीर या पैर में वेदना होती है वह तृणस्पर्श परीषह है।
१८. सर्वांगीण मल को जल्ल कहते हैं अर्थात् स्नान आदि के नहीं करने से तथा पसीने आदि से उत्पन्न हुआ जो कष्ट है वह जल्ल अथवा मल परीषह है।
१६. पूजा प्रशंसा आदि होना सत्कार है और नमन क्रिया या किसी कार्य के प्रारम्भ आदि में आगे करना--प्रमुख करना, उन्हें आमन्त्रित करना पुरस्कार है। इस सत्कारपुरस्कार के न होने से जो मानसिक ताप है वह सत्कार-पुरस्कार-परिषह है।
२०. विज्ञान के मद से उत्पन्न हुआ जो गर्व है वह प्रज्ञापरीषह है।
२१. सिद्धान्त, व्याकरण, तर्क आदि शास्त्रों का ज्ञान न होने से जो अन्तरंग में सन्ताप उत्पन्न होता है वह अज्ञान है।
२२. महाव्रत आदि के अनुष्ठान से भी आज तक मुझे कोई अतिशय नहीं दिख रहा है ऐसा सोचना अदर्शन-परीषह है।
___ इस प्रकार से इन बाईस के नाम गिनाये हैं। यह कथन उपलक्षण मात्र है अतः अन्य भी पीड़ा के कारणों को यहाँ समझ लेना चाहिए । परीषह का अर्थ पीड़ा है । यह परीषह शब्द प्रत्येक के साथ लगा लेना चाहिए; जैसे क्षुधापरीषह, तृषापरीषह आदि ।
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