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[मूलाचारे गवां पशूनां सर्गो निर्गमो यस्मिन् काले स कालो गोसर्गः । गोसर्ग एव गौसर्गिको विघटिकोदयादूर्ध्वकालो द्विघटिकासहितः मध्याह्नात्पूर्वः। एतत्काल चतुष्टयं गृहीत्वोभयकाले दिवसस्य पूर्वाहकालेऽपराहकाले च तथा रात्रः पूर्वकालेभरकाले च पुनः अभीणं स्वाध्यायो भवति कर्तव्यः पठनपरिवर्तनव्याख्यानादीनि कर्तव्यानि भवन्तीति ।।२७०॥
स्वाध्यायस्य ग्रहणकालं परिरामाप्तिकालं च प्रतिपादयन्नाह
सज्झाये पट्टवणे जंघच्छायं वियाण सत्तपयं ।
पुवण्हे अवरहे तावदियं चेव णिढवणे ॥२७१॥
स्वाध्यायस्य परमागमव्याख्यानादिकस्य प्रस्थापने प्रारम्भे, जंघयोश्छाया जंघच्छाया तां जंघच्छायां विजानीहि सप्तपदां सप्तवितस्तिमात्रां पूर्वाण्हेऽपराण्हे च तावन्मात्रां स्वाध्यायसमाप्तिकाले च्छायां विजानीहि । सवितुरुदये यदा जंघाच्छाया सप्तवितस्तिमात्रा भवति तदा स्वाध्यायो ग्राह्यः । अपराण्हे च सवितुर
रात्रि के पश्चिम भाग को विरात्रि कहते हैं अर्थात् दो घड़ी सहित अर्धरात्रि के ऊपर का काल
रात्रि है। विरात्रिहावरात्रिक है। गायों का सग..--निकलना जिसकाल में हो वह गोसगे काल ल है। गोसर्ग ही गौगिक है। दो घड़ी सहित उदय काल से उपर का यह काल दो घड़ी सहित मध्याह्न से पूर्व तक होता है।
__ इन चारों कालों को लेकर के दोनों कालों में अर्थात् दिवस के पूर्वाह्न काल और अपराह्न काल में तथा रात्रि के पूर्वकाल और अपरकाल में अभीक्ष्ण-निरन्तर स्वाध्याय करना होता है अर्थात् पठन, परिवर्तन, व्याख्यान आदि करने होते हैं।
भावार्थ-चौबीस मिनट की एक घड़ी होती है अतः दो घड़ी से अड़तालीस मिनट विवक्षित हैं। सूर्योदय के अड़तालीस मिनट बाद से लेकर मध्याह्न काल के अड़तालीस मिनट पहले तक पूर्वाह्न स्वाध्याय का काल है । इसी को 'गौसर्गिक' कहा है। मध्याह्न के अड़तालीस मिनट बाद से लेकर सूर्यास्त के अड़तालीस मिनट पहले तक अपराह्न स्वाध्याय का काल है इसे 'प्रादोषिक' कहा है। सूर्यास्त के अड़तालीस मिनट बाद से लेकर अर्धरात्रि के अड़तालीस मिनट पहले तक पूर्वरात्रि के स्वाध्याय का काल है इसे भी 'प्रादोषिक' कहा है। पुनः अर्वरात्रि के अड़तालीस मिनट बाद से लेकर सूर्योदय के अड़तालीस मिनट पहले तक अपररात्रि के स्वाध्याय का काल है। इसे 'वैरात्रिक' कहा है । अर्थात् चारों संधिकालों में छयानवे मिनट (लगभग डेढ़ घण्टे) तक का काल अस्वाध्याय काल माना गया है।
अब स्वाध्याय के ग्रहण काल और परिसमाप्ति को कहते हैं
गाथार्थ—पूर्वाह्न में, स्वाध्याय प्रारम्भ काल में जंघाछाया सात पद प्रमाण समझो और अपराह्न में स्वाध्याय समाप्ति में उतनी ही जानो ॥२७१।।
आचारवृत्ति--परमागम के व्याख्यान आदि करने रूप स्वाध्याय के प्रारम्भ में पूर्वाह्न काल में जंघा छाया सात पाद वितस्ति प्रमाण है, अपराह्न में अपराह्निक स्वाध्याय के निष्ठापन में भी सात वितस्ति मात्र है । सूर्य के उदय होने पर जब जंघा की छाया सात
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