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पंचाचाराधिकारः]
[२२७ स्तमनकाले यदा जंघाच्छाया सप्तवितस्तिमात्रा तिष्ठति तदा स्वाध्याय उपसंहरणीय इति ॥२७१॥
पूर्वाण्हे स्वाध्यायस्य परिसमाप्तिः कस्यां वेलायां क्रियते इति पृष्टेऽत आह
आसाढे दुपदा छाया पुस्समासे चदुप्पदा।
वड्ढदे होयदे चावि मासे मासे दुभंगुला ॥२७२॥
जंघाच्छाया इत्यनुवर्तते । मिथुनराशौ यदा तिष्ठत्यादित्यः स काल आषाढमास इत्युच्यते । मासस्त्रिशदात्र: समुदाये वर्तमानोऽप्यत्र मासावसाने दिवसे वर्तमानो गृहयते । समुदायेषु हि वृत्ताः शब्दा अवयवेध्वपि वर्तन्त इति न्यायात । एवं पुष्यमासेऽपि निरूपथितव्यः । आषाढमासे यदा द्विपदा जंघाच्छाया पूर्वाण्हे तदा स्वाध्याय उपसंहर्त्तव्यः । अत्र षडंगुलः पादः परिगृह्यते । तथा पुष्यमासे मध्याह्नोदये यदा चतुष्पदा जंघा. च्छाया भवति तदा स्वाध्यायो निष्ठापयितव्यः । आषाढमासान्तदिवसादारभ्य मासे मासे द्वे द्वे अगुले तावद्वृद्धिमागच्छते यावत्पुष्यमासे चतुष्पदाच्छाया सजाता । पुनस्तस्मादारभ्य द्वे द्वे अंगुले मासे मासे हानिमुपनेतव्ये यावदाषाढे मासे द्विपदाच्छाया संजाता। कर्कटसंक्रान्तेः प्रथमदिवसमारभ्य यावद्धनःसंक्रान्तेरन्त्यदिनं
वितस्ति मात्र होती है तब स्वाध्याय ग्रहण करना चाहिए, और अपराह्न में सूर्यास्त के काल में जब जंघा छाया सात वितस्ति मात्र रहती है तब स्वाध्याय को समाप्त कर देना चाहिए।
पूर्वाह्न में स्वाध्याय की समाप्ति किस बेला में की जाती है ? ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
गाथार्थ-आषाढ़ में दो पाद छाया और पौष मास में चार पाद छाया रहने पर स्वाध्याय समाप्त करे । मास-मास में वह दो-दो अंगुल बढ़ती और घटती है ॥२७२॥
प्राचारवृत्ति-जंघाच्छाया की अनुवृत्ति चली आ रही है। जब सूर्य मिथुनराशि में रहता है वह काल आषाढ़ मास कहलाता है। तीस रात्रि का मास होता है। इस तरह समुदाय में रहते हुए भी यहाँ पर मास के अन्तिम दिन में वर्तमान अर्थ लेना, क्योंकि समुदायों में रहनेवाले शब्द अवयवों में भी रहते हैं ऐसा न्याय है। ऐसे ही पुष्य मास में निरूपण करना चाहिए। अर्थात् यद्यपि मास शब्द का प्रयोग तीस दिन के लिए होता है फिर भी यहाँ मास के अंतिम दिन को मास कहा है; क्योंकि समुदायरूप अर्थों को दिखाने वाले शब्दों का प्रयोग अवयव अर्थ में भी होता है । अतः यहाँ आषाढ़ और पौषमास शब्द से मास का अन्तिम दिन लिया गया है।
आषाढ़ मास में पूर्वाह्न काल में जब जंघाछाया दो पाद प्रमाण रहे तब स्वाध्याय का उपसंहार कर देना चाहिए । यहाँ पर छह अंगुल का पाद लिया गया है। वैसे ही पौष मास में मध्याह्न के उदयकाल में जब जंघाछाया चार पाद प्रमाण रहती है तब स्वाध्याय निष्ठापन कर देना चाहिए । अर्थात् आषाढ़ में पौर्वाह्निक स्वाध्याय करके मध्याह्न के पहले जब छाया दो पाद रह जाती है तब स्वाध्याय समाप्ति का काल है । ऐसे ही पौष में इसी समय चार पाद छाया के रहने पर स्वाध्याय समाप्ति का काल होता है।
आषाढ़ मास के अन्तिम दिन से प्रारम्भ करके महिने-महिने में दो-दो अंगुल छाया बढ़ते हुए तब तक बढ़ती है जब तक पौष मास में छाया चार पाद प्रमाण नहीं हो जाती है।
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