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सामाचाराधिकारः |
इत ऊर्ध्वं पुण्यपापास्रवकारणमाह
पुण्णस्सासवभूदा अणुकंपा सुद्ध एव उवप्रोगो । विवरीदं पावस्स दुप्रासवहेउं वियाणाहि ॥ २३५॥
पुण्यस्य सुखनिमित्त पुद्गलस्कन्धस्यास्रवभूता
आस्रवणमात्रं
वास्रवः आस्रवभूता द्वारभूता कारणरूपा अनुकम्पा कृपा दया शुद्धोपयोगश्च शुद्धमनोवाक्कायक्रिया इत्यर्थः शुद्धज्ञानदर्शनोपयोगश्चाभ्यामनुकम्पा शुद्धोपयोगाभ्यां । विवरीवं -- विपरीतोऽननुकम्पाऽशुद्धमनोवाक्कायक्रिया: मिथ्याज्ञानदर्शनोपयोगः । पावस्स दु— पापस्यैव । आसव — आस्रव आगमहेतुस्तमास्रवहेतुं । वियाणाहि - विजानीहि बुध्यस्व । पूर्वगाथार्थेनास्य गाथार्थस्य नैकार्थं बन्धास्रवोपकारेण प्रतिपादनात् । पूर्वैः कारणैः पुण्यबन्धः पापबन्धश्च व्याख्यातः, आभ्यां पुनः कारणाभ्यां शुभास्रवः शुभकर्मागमोऽशुभास्रवोऽशुभकर्मागमो व्याख्यातः । पुण्यस्यागमनहेतू अनुकम्पा शुद्धोपयोगौ जानीहि पापागमस्य तु विपरीतावननुकंपाऽशुद्धोपयोगी हेतु विजानीहीति ॥ २३५॥
आस्रवत्यागच्छत्यनेनेत्यास्रवः
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भावार्थ- पुण्य और पाप पदार्थ के जीव और अजीव की अपेक्षा दो-दो भेद हो जाते हैं । सम्यक्त्व आदि परिणामों से युक्त जीव पुण्यजीव है और मिथ्यात्व आदि परिणत जीव पाप जीव है । उसीप्रकार से सातावेदनीय आदि प्रकृतियाँ पुण्यरूप हैं ये पौद्गलिक हैं और असाता आदि प्रकृतियाँ पापरूप हैं ये भी पुद्गलरूप हैं ।
इसके अनन्तर पुण्यास्रव और पापास्रव के कारणों को बताते हैं
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गाथार्थ - दयाभावना और शुद्ध उपयोग ये पुण्यास्रव के कारण हैं और इससे विपरीत कार्य पाप के आस्रव में कारण हैं ऐसा तुम जानो ॥ २३५॥
आचारवृत्ति-सुख के लिए निमित्तभूत पुद्गल स्कन्ध जिसके द्वारा आते हैं वह पुण्य का आस्रव है अथवा सुख निमित्त रूप कर्मों का आना मात्र ही पुण्य का आस्रव है। ऐसे आस्रवभूत कर्मों के आने के लिए द्वारस्वरूप या कारणस्वरूप को बताते हैं । अनुकम्पा - दया, शुद्ध उपयोग - शुद्ध मनवचनकाय की क्रिया को शुद्धोपयोग कहते हैं । अर्थात् शुद्धज्ञानोपयोग, शुद्धदर्शनोपयोग और अनुकम्पा इनके द्वारा पुण्य का आस्रव होता है । इनसे विपरीत अर्थात् दया न करना, तथा अशुद्ध मनवचनकाय की क्रिया अर्थात् मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञानोपयोग रूप से परिणत होना - ये पाप के आस्रव के लिए कारण हैं ऐसा जानो ।
पूर्व गाथा के अर्थ से इस गाथा का अर्थ एक नहीं है क्योंकि वहाँ बन्ध को आस्रव के उपकार द्वारा कहा गया है । अर्थात् पूर्व गाथा कथित सम्यक्त्व आदि कारणों से पुण्यबंध और मिथ्यात्वादि कारणों से पाप वंध होता है ऐसा कहा गया है। इस गाथा से अनुकंपा और शुद्ध उपयोग द्वारा शुभ कर्मों के आगमनरूप शुभास्रव और अदया आदि से अशुभकर्मों के आगमनरूप अशुभास्रव होता है ऐसा कहा गया है । इस गाथा का तात्पर्य यही है कि पुण्य कर्म के आने में हेतु अनुकंपा और शुद्धोपयोग हेतु हैं ऐसा समझो। यहाँ मन-वचन-काय की निर्मल प्रवृत्ति को ही शुद्ध उपयोग शब्द से कहा है ।
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