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पंचाचाराधिकारः ]
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ननु यदेवार्थक्रियाकारि तदेव परमार्थ सत् तदेषां धर्मादीनां किं कार्यं ? केषामेतानि कारणान्यत
गठिणग्गाहणकारणाणि कमसो दु वत्तणगुणोय ।
रूवरसगंधफासदि कारणा' कम्मबंधस्स ॥ २३३॥
गदि— गतिर्गमनक्रिया । ठाणं- स्थानं स्थितिक्रिया । ओगाहण - अवगाहनमवकाशदानमेषां । कारणाणि – निमित्तानि । कमसो— क्रमशः यथाक्रमेण । वत्तगगुणोय - वर्तनागुणश्च परिणामकारणं । गतेः कारणं धर्मद्रव्यं जीवपुद्गलानां । तथा तेषामेव स्थितेः कारणमधर्मद्रव्यं । अवकाशदाननिमित्तमाकाशद्रव्यं पंचद्रव्याणां । तथा तेषामपि वर्तनालक्षणं कालद्रव्यं स्वस्य च परमार्थ कालग्रहणात् । धर्माधर्माकाशकाल - द्रव्याणि स्वपरिणाम निमित्तानि परेषां गत्यादीनां निमित्तान्यपि भवन्ति, अनेककार्यकारित्वाद् द्रव्याणां तस्मान्न विरोधो यथा मत्स्यः स्वगतेः कारणं, जलमपि च कारणं तद्गतेः, स्वगतेः कारणं पुरुषः सुखः पन्थाश्च । तथा
प्रश्न- आपने काल का अलग से व्याख्यान क्यों किया ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है । धर्म, अधर्म और आकाश ये तीन अरूपी द्रव्य अस्तिकाय रूप हैं और काल अस्तिकाय रूप नहीं है क्योंकि वह एक-एक प्रदेश रूप ही है उसमें निचय- प्रदेशों के अभाव को बतलाने के लिए ही उसको पृथक्रूप से कहा है ।
यहाँ इस गाथा में जो रूपी हैं वे पुद्गल हैं ऐसा बतलाने के लिये पुनः स्कंध आदि को लिया है इसलिए पुनरुक्ति दोष नहीं आता है । धर्म आदि का प्रतिपादन करके पुद्गल के स्कंध आदि के भेद बतलाने के लिए यहाँ उनका पुनः ग्रहण किया गया है ।
जो अर्थक्रियाकारी होता है वही परमार्थ सत् है । इसलिए इन धर्म आदि का कार्य है ? और किनके लिए ये कारण हैं ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य कहते हैं—
गाथार्थ-क्रम से अरूपी द्रव्य गमन करने, ठहरने, और अवकाश देने में कारण हैं तथा काल वर्तना गुणवाले हैं । रूप, रस, गंध और स्पर्शवाला (पुद्गल) द्रव्य कर्मबन्ध का कारण है ।। २३३ ॥
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आचारवृत्ति - जाने की क्रिया का नाम गति है, ठहरने की क्रिया का नाम स्थान है, अवकाश देने का नाम अवगाहन है । परिणमन का कारण वर्तनागुण है । क्रम से चार अरूपी द्रव्य इन गति आदि में कारण हैं । अर्थात् जीव और पुद्गल के गमन में धर्मद्रव्य कारण है । इन्हीं जीव और पुद्गलों के ठहरने में अधर्मद्रव्य कारण है। पांच द्रव्यों को अवकाश देने में निमित्त आकाश द्रव्य है, तथा इन पाँच द्रव्यों में परिणमन के लिए कारणभूत वर्तनालक्षण वाला कालद्रव्य है और वह अपने में भी परिणमन का कारण है क्योंकि यहाँ परमार्थ काल को लिया गया है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चारों द्रव्य अपने परिणाम में निमित्त हैं और पर-द्रव्यों की गति स्थिति आदि में भी निमित्त होते हैं, क्योंकि सभी द्रव्य अनेक कार्य को करने वाले होते हैं इसलिए कोई विरोध नहीं आता है। जैसे मछली अपने गमन में कारण है और जल भी उसकी गति में कारण है । पुरुष अपनी गति में कारण है और सुखकारी मार्ग भी उसके गमन
कारण
१ क कारणाणि ।
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