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पंचाचाराधिकारः]
१८३ किंभूतमिति पृष्टेऽत उत्तरमाह
होदि वणफदि वल्लो रुक्खतणादी तहेव एइंदी।
ते जाण हरितजीवा जाणित्ता परिहरेदव्वा ॥२१७॥
होदि-भवति । वणप्फदि-वनस्पतिः फलवान् वनस्पति यः । वल्ली-वल्लरी लता। रुक्सवृक्षः पुष्पफलोपगतः । तणादो-तृणादीनि । तहेव-तथैव। एइंदी-एकेन्द्रियाः। अथवा साधारणानामेतद्विशेषणं पूर्व प्रत्येककायानां एते मूलादिवीजाः कन्दादिकाया: साधारणशरीराः प्रत्येककायाश्च सूक्ष्माः स्थूलाश्च ये व्याख्यातास्तान् हरितकायान् जानीहि तथा' एतेऽन्ये च पृथिव्यादयश्चैकेन्द्रिया ज्ञातव्याः परिहर्तव्याश्चान्तदीपकत्वात् । कथमेते जीवा इति चेन्नैषदोषः, आगमादनुमानात्प्रत्यक्षाद्वा, आहारभयमैथुनपरिग्रहसंज्ञास्ति
यह वनस्पति और कैसी है ? ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
गाथार्थ-वेल, वृक्ष, घास आदि वनस्पति हैं तथा पृथ्वी आदि की तरह ये एकेन्द्रिय जीव हैं इन्हें तुम हरितकाय जीव समझो और ऐसा समझकर इनका परिहार करो ॥२१७॥
आचारवृत्ति—जो फलवाली है वह वनस्पति है। लताओं को बेल कहते हैं । पुष्प और फल जिसमें आते हैं उसे वृक्ष कहते हैं । घास आदि को तृण कहते हैं। ये सब पृथ्वीकायिक
___ अर्थात् साधारण जीवों में जहाँ पर एक जीव मरण करता है वहाँ पर अनन्त जीवों का मरण होता है और जहाँ पर एक जीव उत्पन्न होता है वहाँ पर अनन्त जीवों का उत्पाद होता है ।
भावार्थ-साधारण जीवों में मरण और उत्पत्ति की अपेक्षा भी सादृश्य है। प्रथम समय में उत्पन्न होनेवाले साधारण की तरह द्वितीयादि समयो में भी उत्पन्न होनेवाले साधारण जीवों का जन्म-मरण साथ ही होता है । यहाँ इतना विशेष समझना कि एक बादर निगोद शरीर में साथ उत्पन्न होनेवाले अनन्तानन्त साधारण जीव या तो पर्याप्तक ही होते हैं या अपर्याप्तक होते हैं किन्तु मिश्ररूप नहीं होते हैं।
साहारण माहारो साहारण माणपाणगहणं च ।
साहारण जीवाणं साहारण लक्खणं भणियं ॥२४॥ अर्थात् इन साधारण जीवों का साधारण (समान) ही तो आहार आदि होता है और साधारण -एक साथ श्वासोच्छ्वास ग्रहण होता है। इस तरह से साधारण जीवों का लक्षण परमागम में साधारण ही बताया है।
फली वणप्फदी या रुक्खफल्लफलं गदो।
ओसही फलपक्कंता गुम्मा वल्ली च वीरुवा ॥२५॥
अर्थात् जिसमें फली ही लगती हैं उसे वनस्पति कहते हैं । जिसमें पुष्प और फल आते हैं उसे वृक्ष कहते हैं। फलों के पक जाने पर जो नष्ट हो जाते हैं ऐसी वनस्पति को औषधि कहते हैं । गुल्म और बल्ली को वीरुध कहते हैं। जिसकी शाखाएँ छोटी हैं और जिसके मूल जटाकार होते हैं ऐसे छोटे झाड़ गुल्म हैं। जो पेड़ पर चढ़ती हैं और वलयाकार रहती हैं वे वल्ली हैं।
१क तथा हि एतान्येवष्ट ।.
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