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पंचाचाराधिकारः ]
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दुविहा- द्विविधा द्विप्रकाराः । तसा - सा उद्वेजनबहुलाः । बुत्ता — उक्ताः प्रतिपादिता: । विकला - विकलेन्द्रियाः । सकलाः -- सकलेन्द्रियाः । इन्द्रियशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते । मुणेदव्वा - ज्ञातव्याः । वितिच उरिदिय - द्वे त्रीणि चत्वारीन्द्रियाणि येषां ते द्वित्रिचतुरिन्द्रिया द्वीन्द्रियास्त्रीन्द्रियाश्चतुरिन्द्रियाश्चेति । विगला - विकला विकलेन्द्रिया एते । सेसा - शेषाः सकलेन्द्रियाः सकलानि पूर्णानीन्द्रियाणि येषां ते सकलेन्द्रियाः पंचेन्द्रिया इत्यर्थः । जीवा - जीवा ज्ञानाद्युपयोगवन्तः । द्विप्रकारा विकलेन्द्रियसकलेन्द्रियभेदेन ॥२१८॥
के विकलेन्द्रियाः, के सकलेन्द्रिया इत्यत आह-
संखो गोभी भमरादिया दु विगलिदिया मुणेदव्वा ।
सदिया य जलथलखचरा सुरणारयणरा य ॥ २१६ ॥
संखो - शंख । गोभी -- गोपालिका । भमर - भ्रमरः । आदिशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते, शंखादयो भ्रमरादयः । आदिशब्देन शुक्ति- कृमि वृश्चिक- मत्कुण-मक्षिका पतंगादयः परिगृह्यन्ते । एते विगलेंदियाविकलेन्द्रियाः । मुणेदव्वा — ज्ञातव्याः । शेषाः पुनः सकलंदिया --सकलेन्द्रियाः । के ते जलथलखचरा - जले चरन्तीति जलचराः मत्स्यमकरादयः, स्थले चरन्तीति स्थलचराः सिंहव्याघ्रादयः, खेचरन्तीति खचरा हंससारसादयः । सुरणारयणरा य-सुरा देवा भवनवासिवानव्यन्तरज्योतिष्ककल्पवासिनः, नारकाः सप्तपृथिवीनिवासिनो दुःखबहुलाः, नरा मनुष्या इति ॥ २१६ ॥
श्राचारवृत्ति - जो प्रायः उद्विग्न होते रहते हैं वे त्रस कहलाते हैं । उनके विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय के भेद से दो प्रकार हैं । दो-इन्द्रिय, तीन- इन्द्रिय और चार- इन्द्रिय जीव विकलेन्द्रिय कहलाते हैं और सकल अर्थात् पूर्ण हैं इन्द्रियाँ जिनकी ऐसे पंचेन्द्रिय जीव सकलेन्द्रिय कहलाते हैं । ये ज्ञान और दर्शन रूप उपयोग लक्षणवाले होने से जीव हैं ऐसा समझना । विकलेन्द्रिय कौन हैं और सकलेन्द्रिय कौन हैं ? सो ही बताते हैं
गाथार्थ - शंख, गोपालिका और भ्रमर आदि जीवों को विकलेन्द्रिय जानना चाहिए । जलचर, थलचर और नभचर तथा देव, नारकी और मनुष्य ये सकलेन्द्रिय हैं ॥ २१६ ॥
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आचारवृत्ति -- 'भ्रमर' के साथ में प्रयुक्त 'आदि' शब्द प्रत्येक के साथ लगाना चाहिए । यथा -- शंख, सीप, कृमि आदि दो-इन्द्रिय जीव हैं । गोपालिका - बिच्छू, खटमल आदि तीन- इन्द्रिय जीव हैं । भ्रमर, मक्खी, पतंग आदि चार- इन्द्रिय जीव हैं । इनमें विकल - न्यून इन्द्रियाँ हैं, पूर्ण नहीं हुई हैं इसलिए ये विकलेन्द्रिय कहे जाते हैं । इन विकलेन्द्रिय तथा पूर्वकथित एकेन्द्रिय से बचे हुए पंचेन्द्रिय जीव सकलेन्द्रिय हैं । उनमें से निर्यंच के तीन भेद हैंजलचर, थलचर और नभचर । जो जल में रहते हैं वे जलचर है; जैसे मत्स्य, मकर आदि । जो थल पर विचरण करते हैं वे थलचर हैं; जैसे सिंह, व्याघ्र आदि । जो आकाश में उड़ते हैं वे नभचर हैं; जैसे हंस, सारस आदि । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी ये चारों प्रकार के देव सुर कहलाते हैं । सात पृथिवी में निवास करनेवाले और दुःख की अत्यन्त बहुलता नारकी हैं और मनुष्य गति को प्राप्त जीव नरसंज्ञक हैं । ये तीन प्रकार के तिर्यच - देव, नारकी और मनुष्य पंचेन्द्रिय जीव हैं ।
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