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[मूलाचारे
कोटीलक्षाणि चतुर्दश सर्वत्र यथाक्रमं भवन्ति ज्ञातव्यं यथोद्दे शस्तथा निर्देशः क्रमानतिलङ्घनं वेदितव्यम् ।।२२४।।
सर्वकुलसमासार्थं गाथोत्तरेति
एया य कोडिकोडी णवणवदीको डिसदसहस्साइं । पण्णासं च सहस्सा संवग्गीणं कुलाण कोडी
॥२२५॥
एका कोटीकोटी, नवनवतिः कोटी शतसहस्राणि पंचाशत्सहस्राणि च । संवग्गेण – सर्वसमासेन कुलानां कोट्यः । सर्वसमासेन कुलानां एका कोटीकोटी नवनवतिश्च कोटीलक्षाणि पंचाशत्सहस्राणि च कोटीनामिति ॥ २२५॥
योनिभेदेन जीवान्प्रतिपादयन्नाह
णिच्चिदरधा सत्त य तरु दस विगलदिएसु छच्चेव ।
सुरणरयतिरिय चउरो चउदश मणुएसु सदसहस्सा ॥ २२६ ॥
णिच्च नित्यनिकोतं यैस्त्रसत्वं न प्राप्तं कदाचिदपि ते जीवा नित्यनिकोतशब्देनोच्यते । इदर-
वाले दुमुही आदि सर्पों के नव लाख करोड़ कुल होते हैं ।
देवों के कुल छब्बीस लाख करोड़, नारकियों के पच्चीस लाख करोड़ और मनुष्यों के कुल चौदह लाख करोड़ माने गये हैं ।
अब सभी कुलों का जोड़ बताते हैं
गाथार्थ - एक कोटाकोटि, निन्यानवे लाख करोड़, और पचास हजार करोड़ संख्या कुलों की है ॥२२५॥
श्राचारवृत्ति- - इस प्रकार पृथिवीकायिक से लेकर मनुष्यपर्यन्त समस्त कुलों की संख्या को जोड़ने से एक कोड़ाकोड़ी तथा निन्यानवे लाख और पचास हजार करोड़ है ।
भावार्थ- सम्पूर्ण संसारी जीवों के कुलों की संख्या एक करोड़ निन्यानवें लाख पचास हजार को एक करोड़ से गुणने पर जितना प्रमाण लब्ध हो उतना अर्थात् १९६५००००००००००० है । गोम्मटसार में मनुष्यों के १२ लाख कोटि कुल गिनाये हैं । उस हिसाब से सम्पूर्ण कुलों का जोड़ एक करोड़ सत्तानवे लाख पचास हजार करोड़ होता है ।"
अब योनि के भेदों से जीवों का प्रतिपादन करते हैं
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गाथार्थ - नित्य-निगोद, इतर- निगोद और पृथिवी, जल, अग्नि तथा वायु इन चार धातु में सात-सात लाख; वनस्पति के दश लाख और विकलेन्द्रियों के छह लाख, देव, नारकी और तिर्यचों के चार-चार लाख और मनुष्य के चौदह लाख योनियाँ हैं ॥ २२६ ॥
श्राचारवृत्ति- जिन्होंने कदाचित् भी त्रसपर्याय नहीं प्राप्त की है वे नित्य
१. एया य कोडिकोडी सत्ताणउदी सदसहस्साइं .
पण कोडि सहस्सा, सव्वंगीणं कुलाणं य ॥ ११७ ॥ (गोम्मटसार जीव काण्ड )
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