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[मूलाचारे
त्वाद्वा । सचेतना एते 'संज्ञादिभीरागमे निरूप्यमाणत्वात्, सर्वत्वगपहरणे मरणात् उदकादिभिः सावलभावात्, स्पृष्टस्य 'लज्जरिकादेः संकोचकारणत्वात्' वनितागण्डूषसेकाद्धर्षदर्शनात् वनितापादताडनात्पुष्पांकुरादिप्रादुर्भावात्, निधानादिदिशि पादादिप्रसारणादिति ॥ २१७॥
त्रसस्वरूपप्रतिपादनार्थमाह
दुविधा तसा य उत्ता विगला सगलेंदिया मुणेयव्वा । बितिचरिदिय विगला सेसा सर्गालंदिया जीवा ॥२१८॥
जीव आदि के समान ही एकेन्द्रिय हैं । अथवा यह साधारण वनस्पति जीवों का विशेषण है । पूर्व में प्रत्येककाय जीवों का वर्णन किया है।
मूलादि बी-वनस्पति, कंदादिकाय - वनस्पति, साधारणशरीर वनस्पति और प्रत्येककाय वनस्पति बतलायी हैं जिनका कि सूक्ष्म और स्थूल रूप से वर्णन किया है इनको हरितकाय जीव जानो । तथा इनको और इनसे भिन्न पृथिवी, जल, अग्नि, वायुकायिक एकेन्द्रिय जीवों को भी जानो और जानकर इनकी दया पालो । यह 'परिहर्तव्या: ' पद अन्तदीपक है इसलिए इसका सम्बन्ध सभी के साथ हो जाता है ।
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शंका- ये पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति जीव कैसे हैं ? अर्थात् इनमें जीव किस तरह माना जाय ?
समाधान - ऐसा नहीं कहना; क्योंकि आगम से, अनुमान प्रमाण से अथवा प्रत्यक्ष प्रमाण से या आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह इन चारों संज्ञाओं के इनमें पाये जाने से, इन पृथ्वी आदि में जीव का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है । ये आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन संज्ञाओं के द्वारा सचेतन हैं ऐसा आगम में निरूपण किया गया है । देखा जाता है कि सम्पूर्णरूप से छाल को दूर कर दो तो वृक्ष आदि वनस्पति का मरण हो जाता है और जल वायु आदि के मिलने से हरे-भरे हो जाते हैं इसलिए आहार संज्ञा स्पष्ट है । स्पर्श कर लेने पर लाजवंती आदि वनस्पतियाँ संकुचित हो जाती हैं अतः भय संज्ञा भी स्पष्ट है । स्त्रियों के कुल्ले के जल से सिंचित होने से कुछ लता आदि हर्षित अर्थात् पुष्पित हो जाती हैं तथा स्त्रियों के पैरों के लाडन से कुछेक में पुष्प, अंकुर आदि प्रादुर्भूत हो जाते हैं, इसलिए मैथुन संज्ञा मानी जाती है । निधान - खजाने आदि की दिशा में पाद-जड़ आदि फैल जाती हैं इसलिए परिग्रह संज्ञा भी स्पष्ट ही है । अर्थात् इन चारों संज्ञाओं को वनस्पतिकायिक में घटित कर देने से पृथ्वी आदि सभी स्थावरों में जीव है ऐसा निर्णय हो जाता है ।
अब सजीवों का स्वरूप प्रतिपादित करते हुए कहते हैं-
गाथार्थ - विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय के भेद से त्रस दो प्रकार के कहे गये हैं ऐसा जानना चाहिए । दो-इन्द्रिय, तीन-इन्द्रिय और चार इन्द्रिय ये विकलेन्द्रिय जीव हैं। पंचेन्द्रिय जीव सकलेन्द्रिय हैं ॥२१८॥
१ क सदादि । २ क लज्जिरि । ३ क णात् । ४ क काद्वष्मर्द ।
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