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[मूलाचार भवनस्थानादिवाता अत्रवान्तभंवन्तीति । तानेतान् वायुकायिकजीवान् जानीहि ज्ञात्वा च परिहारः कार्यः ॥२१२॥
वनस्पतिकायिकार्थमाह
मुलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरहा ।
संमुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ॥२१३॥
मूल-मूलवीजा जीवा येषां मूलं प्रादुर्भवति ते च हरिद्रादयः । अग्ग–अग्रवीजा जीवाः कोरंटकमल्लिकाकुब्जकादयो येषामग्रं प्रारोहति । पोरवीया-पोरवीजजीवा इक्षुवेत्रादयो येषां पोरप्रदेशः प्रारोहति । कंदा-कन्दजीवाः कदलीपिण्डालुकादयो येषां कन्ददेशः प्रादुर्भवति। तह-तथा। खंधवीया-स्कन्धवीजजीवाः शल्लकीपालिभद्रकादयो येषां स्कन्धदेशो रोहति । वीयवीया----वीजवीजा जीवा यवगोधमादयो येषां क्षेत्रोदकादिसामग्रयाः प्ररोहः । सम्मुच्छिमाय-सम्मूच्छिमाश्च मूलाद्यभावेऽपि येषां जन्म। भणियाभणिताः कथिताः । क आगमे जिनवरैः । पत्तेया-प्रत्येकजीवाः पूगफल-नालिकेरादयः। अणंतकाया यअनन्तकायाश्च स्नुहीगुडच्यादयः, ये छिन्ना भिन्नाश्च प्रारोहन्ति, एकस्य यच्छरीरं तदेवानन्तानन्तानां साधारणाहारप्राणत्वात् साधाराणानां, एकमेकं प्रति प्रत्येकं पृथक्कायादयाः शरीरं येषां ते प्रत्येककायाः । अनन्तः साधारणः कायो येषां तेऽनन्तकायाः । एते मूलादयः सम्मूच्छिमाश्च प्रत्येकानन्तकायाश्च भवन्ति ।।२१३॥
से की गयी वायु अथवा लोक को वेष्टित करने वाली वायु तनुवात हैं। उदर में स्थित पांच प्रकार की वायू होती है। अर्थात् हृदय में स्थित वायु प्राणवायु है, गुद में अपानवायू है, नाभिमण्डल में समानवायु है, कण्ठ प्रदेश में उदानवायु है और सम्पूर्ण शरीर में रहनेवाली वायू व्यानवायु है । ये शरीर सम्बन्धी पाँच वायु हैं । इसी प्रकार से ज्योतिष्क आदि स्वर्गों के विमान के लिए आधारभूत वायु, भवनवासियों के स्थान के लिए आधारभूत वायु इत्यादि वायु के भेद इन्हीं उपर्युक्त भेदों में अन्तर्भूत हो जाते हैं। इन्हें वायुकायिक जीव जानो और जानकर उनका परिहार करो, ऐसा तात्पर्य है।
अब वनस्पतिकायिक जीवों का वर्णन करते हैं
गाथार्थ-पर्व, बीज, कन्द, स्कन्ध तथा बीजबीज; इनसे उत्पन्न होनेवाली और संमूच्छिम वनस्पति कही गयी हैं । ये प्रत्येक और अनन्तकाय ऐसे दो भेदरूप हैं ॥२१३॥
प्राचारवत्ति-मूल से उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ मूलबीज हैं; जैसे हल्दी आदि। अग्र से उत्पन्न होने वाली वनस्पति अग्रवीज हैं; जैसे कोरंटक, मल्लिका, कुब्जक-एक प्रकार का वृक्ष आदि । इनका अग्रभाग उग जाता है। जिनकी पर्व-पोरभाग से उत्पत्ति होती है वे पर्वबीज हैं; जैसे इक्षु वेंत आदि । जिनकी कन्दभाग से उत्पत्ति होती है वे स्कन्धबीज जीव है। कदली, पिंडाल आदि। कोई स्कन्ध से उत्पन्न होते हैं वे स्कन्धबीज जीव हैं; जैसे सल्लकी, पालिभद्र आदि। कोई बीज से उत्पन्न होती हैं वे बीज-बीज कहलाती हैं; जैसे जौ, गेहूँ आदि इनकी खेत में मिट्टी, जल आदि सामग्री से उत्पत्ति होती है।
मल, अग्र-बीज आदि के अभाव में भी जिनका जन्म होता है वे संमच्छिम वनस्पति हैं। इन वनस्पतियों के प्रत्येक और अनन्तकाय ये दो भेद हैं । जिनका स्वामी एक है वे प्रत्येक
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