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[मूलाचार
पतं-पत्र अंकुरोर्ध्वावस्था । पवाल - प्रवालं पल्लवं पत्राणां पूर्वावस्था । पुष्क पुष्पं फलकारणं । फलं - पुष्पकार्यं पूगफलतालफलादिकं । गुच्छा --- गुच्छो बहूनां समूह एककालीनोत्पत्तिः जातिमल्लिकादिः । गुम्म— गुल्मं करंजकंथारिकादिः । वल्ली - वल्लरी श्यामा लतादिका । तणाणि - तृणानि । तह - तथा । पब्वपर्व ग्रंथिकयोर्मध्यं वेत्रादि । काया— कायः स प्रत्येकमभिसम्बध्यते कन्दकायो मूलकाय इत्यादि, एते सम्मूछिमाः प्रत्येकानन्तकायाश्च मूलमादायपत्रमादायोत्पद्यन्त इत्यर्थः । अथवा मूलकायावयवः कन्दकायावयवः इत्यादि, पूर्वाणां वीजमुपादानं कारणं एतेषां पुनः पृथिवीसलिलादिकं उपादानकारणं । तथा च दृश्यते शृङ्गाच्छरः गोमयाच्छालूकं बीजमन्तरेणोत्पत्तिः पुष्पमन्तरेण च यस्योत्पत्तिः फलानां स फल इत्युच्यते, यस्य पुष्पाण्येव भवन्ति स पुष्प इत्युच्यते, यस्य पत्राण्येव न पुष्पाणि न फलानि स पत्र इत्युच्यते इत्यादि सम्बन्धः कर्तव्य इति ॥ २१४॥
सेवाल पणग केण्णग कवगो कुहणोय बादरा काया । सव्वेवि सहमकाया सव्वत्थ जलत्थलागासे ॥ २१५ ॥
है वह पुष्प है । पुष्पों के कार्य को फल कहते हैं; जैसे सुपारी फल आदि । अनेक के समूह का नाम गुच्छा है; जैसे एक काल में उत्पन्न होनेवाले जाति पुष्पों के, मालती पुष्पों के गुच्छे । करंज और कंथारिका आदि गुल्म कहलाते हैं । लता, वेल आदि बल्ली संज्ञक हैं । हरित घास आदि तृण नाम वाले हैं। दो गाँठों के मध्य को, जिससे वेत्रादि उत्पन्न होते हैं, पर्व कहते हैं । गाथा के अन्त में जो काय शब्द है वह प्रत्येक के साथ लगेगा। जैसे कन्दकाय, मूलकाय, स्कन्धकाय, पत्रकाय, पल्लवकाय, पुष्पकाय, फलकाय, गुच्छकाय, गुल्मकाय, वल्लीकाय, तृणकाय और पर्वकाय । ये संमूर्च्छन वनस्पतियाँ प्रत्येक और अनन्तकाय होती हैं । ये मूल या पत्रो का लेकर और भी इसी भाँति उत्पन्न होती हैं । अथवा इनको मूलकाय अवयव, कन्दकायावयव इत्यादि नामों से भी कहते हैं ।
गाथा (२१३) में जिनका वर्णन किया है उनका उत्पादन कारण बीज है । और इस (२१४) गाथा में जिनका वर्णन है उनका उत्पादन कारण पृथिवी, जल, वायु आदि हैं। देखा जाता है कि श्रृंग — सींग से शर-दर्भ उत्पन्न होता है, गोबर से शालूक उत्पन्न होता है अर्थात् ये बीज के बिना ही उत्पन्न हो जाते हैं । पुष्प के बिना भी जिसमें फल उत्पन्न हो जाते हैं वे फलवनस्पति कहलाती हैं। जिसमें मात्र पत्ते ही रहते हैं, न फूल आते हैं और न फल लगते हैं वे पत्रवनस्पति हैं इत्यादि रूप से सम्बन्ध कर लेना चाहिए ।
गाथार्थ - काई, पणक, कचरे में होनेवाली वनस्पति, छत्राकार आदि फफूंदी - ये बादरकाय वनस्पति हैं । सभी सूक्ष्मकाय वनस्पति सर्वत्र जल, स्थल और आकाश में व्याप्त हैं ।। २१५।।*
* निम्नलिखित गाथा फलटन से प्रकाशित प्रति में अधिक है
जलकंजियाण मज्झे इट्टय वम्मीय सिंगमज्तेय ।
सेवाल पणग केrग कवगो कुहणो जहाकमं होंति ॥ १६ ॥
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