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बृहत्प्रत्यास्यानसंस्तरस्त वाधिकारः ]
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संस्थाऩगौरादिवर्णकान्तियौवनोद्भव रमणीयता । जाइ - जातिः मातृकसन्तानशुद्धिः । एतैरेतेषां वा, मयामदा गर्वाः । मदशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते । विज्ञानमद, ऐश्वर्यमदः, आज्ञामदः, कुलमदः, बलमदः, जातिमदः, तपोमदः, रूपमद इति संज्ञा 'भेद: सुगमत्वान्न विस्तरः ।
अथ के यस्त्रिशत्पदार्था येषां त्रयस्त्रिशदासादनानीत्यत आह
पंचैव प्रत्थिकाया छज्जीवणिकाय महव्वया पंच | पवयणमाउपयत्था तेती सच्चासणा भणिया ॥ ५४ ॥
पंचैव पंचैव । अस्थिकाया - अस्तिकाया: कायो निचयः परस्परप्रदेश सम्बन्धो येषां तेऽस्तिकायाः अस्तिमन्तो द्रष्टव्या जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशाः । कालस्य प्रदेशप्रत्रयो नास्तीत्यतोऽस्तिकायत्वं नास्ति ।
डरना । वेदनाभय - रोग आदि से उत्पन्न हुई पीड़ा से डरना । आकस्मिकभय - अकस्मात् मेघगर्जना, विद्युत्पात आदि होने से डरना । ये सात भय सम्यग्दृष्टि को नहीं होते हैं क्योंकि वह आत्मा का विघात नहीं मानता है ।
विज्ञान - अक्षरज्ञान और संगीत आदि का ज्ञान होना, ऐश्वर्य - - द्रव्यादि सम्पत्ति का वैभव होना; आज्ञा - अपने द्वारा दिए गये आदेश का उलंघन न होना; कुल-पिता के वंश परम्परा की शुद्धि का होना अथवा इक्ष्वाकु वंश, हरिवंश आदि में जन्म लेना; बल, शरीर, आहार आदि से उत्पन्न हुई शक्ति का होना; तप- शरीर को संतापित करना, रूपसमचतुरस्र संस्थान, गौर आदि वर्ण, सुन्दर कान्ति और यौवन से उत्पन्न हुई रमणीयता का होना; जाति- माता के वंश परम्परा की शुद्धि का होना, ये आठ मुख्य हैं। इनके द्वारा अथवा इनका गर्व करना ये ही आठ मद कहलाते हैं । मद शब्द का प्रयोग आठों में करना चाहिए । यथा - विज्ञानमद, ऐश्वर्यमद, आज्ञामद, कुलमद, बलमद, जातिमद, तपोमद, और रूपमद । इस प्रकार इनके निमित्त से होनेवाले गर्व का त्याग करना चाहिए। सम्यग्दृष्टि के लिए ये पच्चीस मलदोष में दोषरूप हैं ।
विशेष - साधुओं में भयकर्म के उदय से इन सात भयों में कदाचित् कोई भय उत्पन्न हो भी जावे तो भी वह मिथ्यात्व का सहचारी नहीं है । ऐसे ही कदाचित् संज्वलन मान के उदय से साधुओं के आठ मदों में से कोई मद उत्पन्न हो जाय तो भी साधु उसे छोड़ देते हैं । अब तेतीस पदार्थ कौन से हैं जिनकी तेतीस आसादनाएं होती हैं ? ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
गाथार्थ - अस्तिकाय पांच ही हैं, जीव निकाय छह हैं, महाव्रत पाँच हैं और प्रवचनमाता आठ और नवपदार्थ - ये तेतीस ही यहाँ तेतीस आसादना नाम से कहे गए हैं। अर्थात् इनकी विराधना ही आसादना कहलाती है ॥५४॥
श्राचारवृत्ति — अस्ति - विद्यमान है कायनिचय अर्थात् प्रदेशों का समूह जिसमें वह अस्तिकाय है । अर्थात् परस्पर में प्रदेशों का सम्बन्ध जिन द्रव्यों में पाया जाता है वे द्रव्य अस्तिकाय
१. क संज्ञादेः । २. क विस्तरितः ।
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