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बृहत्प्रत्याख्यान संस्तरस्तवाधिकारः ]
मार्गनाशक: मार्गविप्रतिकूलश्च मोहेन मोहयन् स' सम्मोहकर्मभिः स्वंमोहेषु जायते इति ।
आसुरी भावनां तथोत्पत्ति च प्रपंचयन्नाह -
खुद्दी कोही माणी मायी तह संकिलिट्ठो तवे चरिते य । . श्रणुबद्धवेर रोई प्रसुरेस्ववज्जदे जीवो ॥ ६८ ॥
खुद्दी - क्षुद्रः पिशुनः । कोही — क्रोधी । माणी-मानी गर्वयुक्तः । माई – मायावी । तह य -- तथा च । संकलिट्ठो—संक्लिष्टः संक्लेशपरायणः । तवे - तपसि । चरिते य-चरित्रे च । अणुबद्धवेररोईअनुबद्धं वैरं रोचते अनुबद्धवैररोची कषायवहुलेषु रुचिपरः । असुरे सुववज्जदे - असुरेषूत्पद्यते अंबावरीषसंज्ञकभवनेषु । जीवो— जीवः । यः क्षुद्रः, क्रोधी, मानी, मायावी अनुबद्धवैररोची तथा तपसि चरित्रे च यः संक्लिष्टः सोऽसुरभावतया सुरेषूत्पद्यते इति ।
व्यतिरेकद्वारेण बोधि प्रतिपादयन्नाह -
मिच्छादंसणरत्ता सणिदाणा किण्हलेसमोगाढा । इह जे मरंति जीवा तेसि पुण दुल्लहा बोही ॥६६॥
को विपरीत बुद्धिवाला करता हुआ संमोह कर्म के द्वारा स्वच्छन्द प्रवृत्तिवाले सम्मोह जाति के देवों में उत्पन्न होता है ।
अब आसुरी भावना को और उससे होनेवाली गति को बताते हैं
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गाथार्थ - जो क्षुद्र, क्रोधी, मानी, मायावी है तथा तप और चारित्र में संक्लेश रखने वाला हैं, जो बैर को बाँधने में रुचि रखता है वह जीव असुर जाति के देवों में उत्पन्न होता है ॥ ६८ ॥
आचारवृत्ति - जो क्षुद्र अर्थात् चुगलखोर है अथवा हीन परिणाम वाला, क्रोध स्वभाव वाला हैं, मान- कषायी है, मायाचार प्रवृत्ति रखता है; तथा तपश्चरण करते हुए और चारित्र को पालते हुए भी जिसके परिणामों में संक्लेष भाव बना रहता है अर्थात् परिणामों में निर्मलता नहीं रहती; जो अनन्तानुबन्धी रूप बैर को बाँधने में रुचि रखता है अर्थात् किसी के साथ कलह हो जाने पर उसके साथ अन्तरंग में ग्रन्थि के समान बैरभाव बाँध कर रखता है ऐसा जीव इन असुर भावनाओं के द्वारा असुर जाति में, अन्तर्भेदरूप एक अंबावरीष जाति है उसमें, जन्मता है । ये अंबावरीष जाति के देव ही नरकों में जाकर नारकियों को परस्पर में पूर्वभव के बेर का स्मरण दिला दिलाकर लड़ाया करते हैं और उन्हें लड़ते-भिड़ते दुःखी होते देखकर प्रसन्न होते रहते हैं ।
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अब व्यतिरेक कथन द्वारा बोधि का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ - यहाँ पर जो जीव मिथ्यादर्शन से अनुरक्त, निदान सहित और कृष्णलेश्या से मरण करते हैं उनके लिए पुनः बोधि की प्राप्ति होना दुर्लभ है ॥६६॥
१. क 'स्वस ।
* 'भगवती आराधना' में भी इन भावनाओं का वर्णन किया गया है ।
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