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[मूलाचारे
सम्वसि-सर्वेषां प्रमतात्रमतादीनां सर्वेषां यतीनामाचारः। समो प्राणिवधादिभिर्यत्नोऽतः समाचारः। अथवा सम उपसमः को घाद्यभावस्तेन परिणामेनाचरणं समाचारः । समशब्देन दशलाक्षणिकधर्मो गृह्यते स समाचारः। अथवा भिक्षाग्रहणदेववन्दनादिभिः सह योगः समाचारः। सम्माणं-सह मानेन परिणामेन वर्तते इति समानं सहस्य सः, समानं वा मानं, समानस्य सभावः । अथवा सर्वेपां समानः पूज्योऽभिप्रेतो वा आचारो यः स समाचारः । अथवा समदा सम्यक्त्वं, सम्माचारो-चारित्रं, समाणं-ज्ञानं, समो वा आचारो-तपः। एतेषां सर्वेषां योऽयं समाचारः ऐक्यं स समाचारः, आचारो वा समाचारः । यस्तु समाचारः स आचार एवेत्यविनाभावः । अथवा पञ्चभिर निर्देशः समदा समरसीभावः समयाचारो-स्वसमयव्यवस्थयाचारः, सम्माचारो
लेना अर्थ हुआ इसलिए समीचीन ज्ञान और निर्दोष आहार ग्रहण को भी सम्यक् आचार रूप समाचार कहा है।
३. सम प्राचार-पाँच (महाव्रत) आचारों को सम आचार कहा है जो कि प्रमत्त, अप्रमत्त आदि सभी मुनियों का आचार समान रूप होने से सम-आचार है । क्योंकि ये सभी मुनि प्राणिबध आदि के त्याग करने रूप व्रतों से समान हैं इसीलिए उनका आचार सम-आचार है। अथवा सम-उपशम अर्थात् क्रोधादि कषायों के अभावरूप परिणाम से सहित जो आचरण है वह समाचार है। अथवा सम शब्द से दशलक्षण धर्म को भी ग्रहण किया जाता है अतः इन क्षमादि धर्मों सहित जो आचार है वह समाचार है । अथवा आहार ग्रहण और देववन्दना आदि क्रियाओं में सभी साधुओं को सह अर्थात् साथ ही मिलकर आचरण करना समाचार है।
४. समान आचार-मान (परिणाम) के सह (साथ) जो रहता है वह समान है। यहाँ सह को स आदेश व्याकरण के नियम से सह मान समान बना है । अथवा समान मान को समान कहते हैं यहाँ पर भी समान शब्द को व्याकरण से 'स' हो गया है अर्थात् समान आचार समाचार है। अथवा सभी का समान रूप से पूज्य या इष्ट जो आचार है वह समाचार है।
ये चार अर्थ समाचार के अलग-अलग निरुक्ति करके किये गये हैं अर्थात् प्रथम तो समता आचार से समाचार का अर्थ कई प्रकार से किया है, पुनः दूसरी व्युत्पत्ति में सम्यक् आचार से समाचार शब्द बनाकर उसके भी कई अर्थ विवक्षित किये हैं। तीसरी बार सम आचार से समाचार को सिद्ध करके कई अर्थ बतायें हैं, पुनः समान आचार से समाचार शब्द बनाकर कई अर्थ दिखाये हैं।
- अब पुनः सभी का समन्वय कर निरुक्ति पूर्वक अर्थ का स्पष्टीकरण करते हैं—यथा, समता-सम्यक्त्व, सम्यक् आचार-चारित्र, समान--ज्ञान (मान का अर्थ प्रमाण-ज्ञान होता है) और सम-आचार-तप, इन सभी का (चारों का) जो समाचार अर्थात् ऐक्य है वह समाचार है अर्थात् सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चारों को एकता का नाम समाचार है। अथवा आचार अर्थात् मुनियों के आचार-प्रवृत्ति को समाचार कहते हैं क्योंकि जो भी साधुओं का समाचार है वह आचार ही है अर्थात् आचार और समाचार में अविनाभावी सम्बन्ध हैएक दूसरे के बिना नहीं रह सकते हैं । तात्पर्य यह है कि जो भी साधुओं का आचार है वह सब समाचार ही है।
अथवा पाँच अर्थोसे समाचार का निर्देश करते हैं--समता समरसी भाव, समयाचार
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