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समाचाराधिकारः ]
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सम्यगाचारः, समो वा सहाचरणं । सः सव्र्व्वसु – सर्वेसु क्षेत्रेषु समाणं - समाचारः । संक्षेपार्थं 'समताचारः सम्यगाचारः, समो य आचारो वा सर्वेषां स समाचारो हानिवृद्धिरहितः, कायोत्सर्गादिभिः समानं मानं यस्याचारस्य स वा समाचार इति ॥ १२३ ॥
अस्यैव समाचारस्य लक्षणभेदप्रतिपादनार्थमाह
दुविहो सामाचारो ओधोविय पदविभागियो चेव । दहा ओघ भणिश्रो प्रणेगहा पदविभागीय ॥ १२४ ॥
दुविहो— द्विविधः द्विप्रकारः । सामाचारो - सामाचारः सम्यगाचार एव समाचारः प्राकृतबलाद्वा ]
स्वसमय अर्थात् जैन आगम की व्यवस्था के अनुरूप आचार, सम्यक् आचार - समीचीन आचार, सम- आचार - सभी साधुओं का साथ-साथ आचरण या क्रियाओं का करना, सभी में - सभी क्षेत्रों में समान - समाचार होना । अर्थात् गाथा से देखिए : समरसी भाव का होना (समदा), स्वसमय की व्यवस्था से आचरण करना (समयाचारो), समीचीन आचार होना (सम्माचारी), साथ आचरण करना (समोवा), सभी क्षेत्रों में समाचार - समान आचरण करना (सव्वेसु समाणं) ये पाँच अर्थ किये गये हैं । इसीको संक्षेप से समझने के लिए कहते हैं कि समताचार - समरसी भाव का होना, सम्यक् आचार - समीचीन आचार का होना, सम-आचार - सभी साधुआ का हानि-वृद्धिरहित समान आचरण होना, समान आचार - कायोत्सर्ग आदि से समान प्रमाण रूप है आचार जिसका वह भी, समाचार हैं ।
भावार्थ - यहाँ पर मूल गाथा में समाचार शब्द के चार अर्थ प्रकट किये हैं । टीकाकार ने इन्हीं चार अर्थों को विशेष रूप से प्रस्फुट किया है । पुनः एक बार चारों अर्थसूचक शब्दों से चार आराधनाओं को लेकर उनकी एकता को समाचार कहा है और अनन्तर गाथा के 'समाचार' पद को भी लेकर पूर्वोक्त चार पदों के साथ मिलाकर समाचार के पाँच अर्थ भी किये हैं । इसके भी तात्पर्य को सक्षेप से स्पष्ट करते हुए उन्हीं चार अर्थों को थोड़े शब्दों में कहा है । सबका अभिप्राय यही है कि मुनियों की जो भी प्रवृत्तियाँ हैं वे सम्यक्पूर्वक होती हैं, आगम के अनुसार होती हैं, रागद्वेष के अभावरूप समता परिणाममय होती हैं और वे मुनि हमेशा संघ के गुरुओं के सान्निध्य में देववन्दना कायोत्सर्ग आदि को साथ-साथ करते हैं । तथा कायोत्सर्ग आदि में सभी के लिए उच्छ्वास आदि का प्रमाण भी समान ही बतलाया गया है जैसे दैवसिक प्रतिक्रमण में १०८ उच्छ्वास, रात्रिक में ५४ इत्यादि । अहोरात्र सम्बन्धी कायोत्सर्ग भी सभी के लिए २८ कहे गये हैं जिनका वर्णन आगे आवश्यक अधिकार में आयेगा । ये सभी क्रियाएँ जो साथ-साथ और समान रूप से की जाती हैं वह सब समाचार ही हैं ।
अब इसी समाचार के लक्षण भेद वतलाते हुए कहते हैं
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गाथार्थ - औधिक और पदविभागिक के भेद से समाचार दो प्रकार का है । औधिक समाचार दश प्रकार का है और पदविभागी समाचार अनेक प्रकार का कहा गया है ॥ १२४ ॥ आचारवृत्ति-सम्यक् आचार ही सामाचार हैं । यहाँ प्राकृत व्याकरण के निमित्त से
१. क समता समाचारः ।
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