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सामाचाराधिकारः]
[११३ भिप्राये । पडिपुच्छा–प्रतिपृच्छा पुनः प्रश्नः । छंदणं-छंदनं छंदो वा तदभिप्रायेण सेवन, गहिदे-गृहीते द्रव्ये पुस्तकादिके । अगहिददवे-अगृहीतद्रव्ये अन्यदीयपुस्तकादिवस्तुनि स्वप्रयोजने जाते । णिमंतणा-निमंत्रणा सत्कारपूर्वकं याचनं गृहीतस्य विनयेन निवेदनं वा । भणिदा-भणिता । तुम्हं-युष्माकं । अहंति-अहमिति । गुरुकुले-आम्नाये त्ववृहत्पादमूले । आदणिसग्गो-आत्मनो निसर्गस्त्यागः तदानुकल्याचरणं । तु-अत्यर्थवाचकः । उवसम्पा-उपसम्पत् ॥१२६-१२८।।
एवं दशप्रकारौघिकसामाचारस्य संक्षेपार्थ पदविभागिनश्च विभागार्थमाह
ओघियसामाचारो एसो भणिदो ह दसविहोणेओ।
एत्तो य पदविभागी समासदो वण्णइस्सामि ॥१२६॥
एष--औधिक: सामाचारो दशप्रकारोऽपि । भणित:-कथितः। समासत:-संक्षेपतो ज्ञातव्यो अनुष्ठेयो वा। एत्तो य-इतश्चोवं। पदविभागिनं समाचारं। समासदो--समासतः। वण्णइस्सामिवर्णयिष्यामि । यथोद्देशस्तथा निर्देश इति न्यायादिति ॥१२६॥
उग्गमसूरप्पहुदी समणाहोरत्तमंडले कसिणे।
जं प्राचरंति सददं एसो भणिदो पदविभागी ॥१३०॥
उग्गमसूरप्पहुदो-उद्गच्छतीत्युद्गम: सूर आदित्यो यस्मिन् काले स उद्गमसूर उदयादित्यकालः, अथवा सूरस्योद्गमः उद्गमसूरः उद्गमस्य पूर्वनिपातः स प्रभृतिरादिर्यस्यासौ उद्गमसूरप्रभृतिस्तस्मिन्नु
स प्रकार से आत्म का त्याग करना-आत्म समर्पण कर देना, उनके अनुकल ही सारी प्रवत्ति करना यह उपसंपत् है । गाथा में 'तु' शब्द अत्यर्थ का वाचक है अर्थात् अतिशय रूप से गुरु को अपना जीवन समर्पित कर देना । इस प्रकार से ये दश ओघिक समाचार कहे गए हैं।
___ इस प्रकार से दशभेद रूप औधिक समाचार को संक्षेप से बताकर अब पदविभागिक के विभाग अर्थ को कहते हैं
गाथार्थ—यह कहा गया दश प्रकार का औधिक समाचार जानना चाहिए। अब इसके बाद संक्षेप से पदविभागी समाचार कहूँगा ॥१२६।।।
आचारवृत्ति-दश प्रकार का संक्षेप से कहा गया यह औघिक समाचार जानना चाहिए अथवा इनका अनुष्ठान करना चाहिए। इसके अनन्तर पदविभागी समाचार को कहूँगा। क्योंकि जैसा उद्देश होता है वैसा ही निर्देश होता है ऐसा न्याय है अर्थात् नाम कथन को उद्देश कहते हैं और उसके लक्षण आदि रूप से वर्णन करने को निर्देश कहते हैं; सो गाथा में पहले औधिक फिर पदविभागी को कहा है। इसीलिए औधिक को कहकर अब पदविभागी को कहते हैं।
गाथार्थ-श्रमणगण सूर्योदय से लेकर सम्पूर्ण अहोरात्र निरन्तर जो आचरण करते हैं ऐसा यह पदविभागी समाचार है ॥१३०॥
प्राचारवत्ति-उदय को प्राप्त होना उदगम है। जिस काल में सूर्य का उदय होता है उसे उद्गमसूर अर्थात् सूर्योदय काल कहते हैं । अथवा सूर्य का उद्गम होना उद्गमसूर शब्द
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