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[मूलाचारे यति । गणिणे--गणिने आचार्याय । विणएण-विनयेन । आगमकज्जं-आगमनकार्य स्वकीयागमनप्रयोजनं। विदिए-द्वितीये । तदिए-तृतीये । दिवसम्मि-दिवसे। तं दिवसं विश्रम्य द्वितीये ततीये वा दिवसे विनयेनोपढौक्याचरणं च परीक्ष्याचार्यायागमनकार्य निवेदयत्यागन्तुकः । अथवाचार्यस्य गृह्यास्तं' परीक्ष्य निवेदयन्ति गणिने इति ॥१६॥
एवं निवेदयते यदाचार्यः करोति तदर्थमाह
आगंतुकणामकुलं गुरुदिक्खामाणवरिसवासं च ।
आगमणदिसासिक्खापडिकमणादी य गुरुपुच्छा ॥१६६॥
आगन्तुक णामकुलं-आगन्तुकस्य पादोष्णस्य, नाम-संज्ञा, कुलं-गुरुसंतानः, गुरुःप्रव्रज्यायादाता। दिक्खामाणं-दीक्षाया मानं परिमाणं । वरिसवासं च-वर्षस्य वासः वर्षवासश्च वर्षकालकरणं च, आगमणदिसा-आगमनस्य दिशा कस्या दिश आगतः । सिक्खा--शिक्षा श्रुतपरिज्ञानं । पडिक्कमजादीय-प्रतिक्रमण आदिउँपां ते प्रतिक्रमणादयः । गुरुपुच्छा--गुरोः पृच्छा गुरुपृच्छा । एवं गुरुणा तस्यागतस्य प्रच्छा क्रियते किं तव नाम ? कुलं च ते कि ? गुरुश्च युष्माकं कः ? दीक्षापरिमाणं च भवतः कियत् ? वर्षकालश्च भवद्भिः क्व कृतः ? कस्या दिशो भवानागतः? किं पठितः ? कि च' श्रुतं त्वया, कियन्त्यः प्रतिक्रमणास्तव संजाताः, न च भूता:कियन्त्यः । प्रतिक्रमणाशब्दो युजन्तोऽयं द्रष्टव्यः । किच त्वया श्रवणीयं? कियतोऽध्वन आगतो भवानित्यादि ॥१६६॥
___ एवं तस्य स्वरूपं ज्ञात्वा
आचरण को शद्ध जानकर, दूसरे दिन या तीसरे दिन आचार्य के निकट आकर विनयपूर्वक अपने विद्या-अध्ययन हेतु आगमन के कार्य को आचार्य के पास निवेदन करते हैं। अथवा संघस्थ आचार्य के शिष्य मुनिवर्ग उस आगन्तुक की परीक्षा करके 'यह ग्रहण करने योग्य हैं' ऐस आचार्य के समीप निवेदन करते हैं।
ऐसा निवेदन करने पर आचार्य जो कुछ करते हैं उसे कहते हैं
गाथार्थ-आगन्तुक का नाम, कुल, गुरु, दीक्षा के दिन, वर्षावास, आने की दिशा, शिक्षा, प्रतिक्रमण आदि के विषय में गुरु प्रश्न करते हैं ।।१६६।।।
प्राचारवृत्ति-गुरु आगन्तुक मुनि से प्रश्न करते हैं। क्या-क्या प्रश्न करते हैं सो बताते हैं। तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारा कुल-गुरुपरम्परा क्या है ? तुम्हारे गुरु कौन हैं ? तुम्हें दीक्षा लिये कितने दिन हुए हैं ? तुमने वर्षायोग कितने और कहाँ-कहाँ किये हैं ? तुम किस दिशा से आये हो ? तुमने क्या-क्या पढ़ा है ? अर्थात् तुम्हारा श्रुतज्ञान कितना है और तुमने क्या-क्या सुना है ? तुम्हारे कितने प्रतिक्रमण हुए हैं और कितने नहीं हुए हैं ? और तुम्हें अभी क्या सुनना है? तुम किस मार्ग से आए हो ? इत्यादि प्रश्न करते हैं। तब शिष्य उनको समुचित उत्तर देता है।
प्रश्नों के उत्तर सुनकर और उसके स्वरूप को जानकर आचार्य क्या कहते हैं ? सो बताते हैं
१.क "स्तं श्रतं प"। २. क निवेदिते। ३. क वर्षकालकालश्च। ४.क स्तवभूताः।
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