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सामाचाराधिकारः]]
[११६ कार्य महत्करणीयं गुर्वादीन् पृष्ट्वा पुनरपि साधून पृच्छति साधुर्वा तत्कायं तदेव प्रश्नविधानं प्रतिपृच्छां जानीहीति ॥१३६।।
अष्टमं सूत्रां प्रपंचयन्नाह
गहिदुवकरणे विणए वदणसुत्तत्थपुच्छणादीसु। ___ गणधरवसहादीणं अणुवृत्ति छंदणिच्छाए॥१३७॥ __ गहिदुवकरणे-गृहीते स्वीकृते उपकरणे संयमज्ञानादिप्रतिपालनकारणे आचार्यादिप्रदत्तपुस्तकादिके विणए-विनये विनयकाले वंदण-वन्दनायां वंदनाकाले क्रियाग्रहणेन कालस्यापि ग्रहणं तदभेदात् । सुत्तत्थपुच्छणादीसु-सूत्रस्य अर्थस्तस्य प्रश्नः स आदिर्येषां ते सूत्रार्थप्रश्नादयस्तेषु । गणधरवसभादीणं-गणधरवृषभा दीनां आचार्यादीनां । अणुवुतीअनुवृत्तिरनुकूलाचरणं । छन्दणं-छन्दः छन्दोऽनुवर्तित्वं । इच्छाए-इच्छया। सूत्रार्थप्रश्नादिषु उपकरणद्रव्ये च गृहीते विनये बंदनायां च गणधरवृषभादीनामिच्छ्यानुवृत्तिश्छन्दनमिति । अथवोपकरणद्रव्यस्वामिन इच्छया गृहीतुरनुवृत्तिश्छंदनमाचार्यादीनां च प्रश्नादिषु वन्दनाकाले चेति ।
नवमस्य सूत्रस्य विवरणार्थमाह
गुरुसाहम्मियदव्वं पुच्छयभण्णं च गेण्हि, इच्छे।
तेसि विणयेण पुणो णिमंतणा होइ कायव्वा ॥१३८॥ में गुरुओं से एक बार पूछकर पुनरपि जो पूछता है उस प्रश्न की विधि का नाम प्रतिपृच्छा है। हे शिष्य ! ऐसा तुम जानो।
अब छन्दन का लक्षण कहते हैं--
गाथार्थ-ग्रहण किये हुए उपकरण के विषय में, विनय के समय, वन्दना के काल में, सूत्र का अर्थ पूछने इत्यादि में गणधर प्रमुख आदि की इच्छा से अनुकूल प्रवृत्ति करना छन्दन है ॥१३७॥
प्राचारवृत्ति-संयम की रक्षा और ज्ञानादि के कारण ऐसे आचार्य आदि के द्वारा दिए गये पिच्छी, पुस्तक आदि को लेने पर विनय के समय, वन्दना के समय, सूत्र के अर्थ का प्रश्न आदि करने में आचार्य आदि की इच्छा के अनुकूल प्रवृत्ति करना छन्दन नामक समाचार है।
अथवा उपकरण की वस्तु के जो स्वामी हैं उनकी इच्छा के अनुकूल ही ग्रहण करनेवाले साधु को उन वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए तथा आचार्य आदि से प्रश्न करते समय उनकी विनय करने में या वन्दना के समय उनके अनुकूल कार्य करना चाहिए।
भावार्थ-गुरु आदि से जो भी उपकरण या ग्रन्थ आदि लिये हैं उनके उपयोग में उन गुरुओं के अनुकूल ही प्रवृत्त होना तथा गुरुओं की विनय में, उनकी वन्दना में जो गुरुओं की इच्छा के अनुसार वर्तन करना है सो छन्दन है।
नवमें निमन्त्रणा समाचार को कहते हैं
गाथार्थ-गुरु या सहधर्मी साधु से द्रव्य को, पुस्तक को या अन्य वस्तु को ग्रहण करने की इच्छा हो तो उन गुरुओं से विनयपूर्वक पुनः याचना करना निमन्त्रणा समाचार है ॥१३८॥
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