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सामाचाराधिकारः]
[१२३ कमेतत्सर्व मदीयमिति वचनं । सहदुक्खवसंपया-सुखदुःखोपसंपत। णेया-ज्ञातव्या। सुखदु:खनिमित्तं पिछवसतिकादिभिरुपचारो युष्माकमिति वचनं उपसम्पत् सुखदुःखविषयेति ।
पंचम्या उपसम्पदः स्वरूपनिरूपणार्थमाह
उपसंपया य सुत्ते तिविहा सुत्तत्थतदुभया चेव ।
एक्केक्का विय तिविहा लोइय वेदे तहा समये ॥१४४ ॥
सूत्रविषयोपसम्पच्च त्रिविधा त्रिप्रकारा। सुत्तत्थतदुभया चेव-सूत्रार्थतदुभया चैव सूत्रार्थो यत्नः सूत्रोपसम्पत्, अर्थनिमित्तो यत्नो ऽर्थोपसम्पत, सूत्रार्थोभयहेतुर्यत्नः तदुभयोपसंपत् तादात्ताच्छब्द्यमिति । एकंकापि च सूत्रार्थोभयसम्पत् लौकिकवदिकसामायिकशास्त्रभेदात्त्रिविधा । लौकिकसूत्रार्थतदुभयानामवगमः । तथा वैदिकानां सामायिकानां च । हण्डावसपिण्यपेक्षया वैदिकशास्त्रस्य ग्रहणं । अथवा सर्वकालं नयाभिप्रायस्य सम्भवाद्वैदिकस्य न दोषः । अथवा वेदे सिद्धान्ते समये तर्कादौ इति । तुम्हं महद्गुरुकुले आत्मनो निसर्ग: उपसम्पदुक्ता'।
पदविभागिकस्य सामाचारस्य निरूपणार्थमाह--- करेंगे वह सब हम करेंगे', अथवा जो यह सब मेरा है वह सब आपका ही है ऐसे वचन बोलना यह सब सुख-दुःखोपसंपत् है।
विशेष-प्रश्न हो सकता है कि साधु साधु के लिए वसितका, आहार, औषधि आदि कैसे देंगे ? समाधान यह है कि किसी वसितका आदि में ठहरे हुए आचार्य उस वसतिका में ही उचित स्थान देंगे या अन्य वसतिकाओं में उनकी व्यवस्था करा देंगे अथवा श्रावकों द्वारा वसतिका की व्यवस्था करायेंगे, ऐसे ही श्रावकों के द्वारा उनके स्वास्थ्य आदि के अनुकूल आहार या रोग आदि के निमित्त औषधि आदि की व्यवस्था करायेंगे। यही व्यवस्था सर्वत्र विधेय है।
अब पंचम सूत्रोपसंपत् का वर्णन करते हैं
गाथार्थ-सूत्र के विषय में उपसंपत् तीन प्रकार की है-सूत्रोपसंपत्, अर्थोपसंपत् और तदुभयोपसंपत् । फिर लौकिक, वेद और समय की अपेक्षा से वह एक-एक भी तीन प्रकार की हो जाती हैं ॥१४४॥
प्राचारवृत्ति-सूत्रोपसंपत् के तीन भेद हैं-सूत्रोपसंपत्, अर्थोपसंपत् और सूत्रार्थोपसंपत् । सूत्र के लिए प्रयत्न करना सूत्रोपसंपत् है। उसके अर्थ को समझने के लिए प्रयत्न करना अर्थोपसंपत है तथा सूत्र और अर्थ दोनों के लिए प्रयत्न करना सूत्रार्थोपसंपत् है। इन एक-एक के भी लौकिक, वैदिक और सामायिक शास्त्रों के भेद की अपेक्षा से तीन-तीन भेद हो जाते हैं। लौकिक सूत्र का ज्ञान लौकिक सूत्रोपसंपत् है, लौकिक सूत्र के अर्थ का ज्ञान लौकिक सूत्र के अर्थ का उपसंपत् और लौकिक सूत्र तथा उसका अर्थ इन दोनों का ज्ञान लौकिक सूत्रार्थ उपसंपत् है। ऐसे ही वैदिक और सामायिक के विषय में भी समझना चाहिए अर्थात् वैदिक सूत्रोपसंपत्, वैदिकार्थोपसंपत् और वैदिकसूत्रार्थोपसंपत् ये तीन भेद हैं । ऐसे ही सामायिकसूत्रोपसंपत्, सामायिकसूत्रसम्बन्धी अर्थोपसंपत् और सामायिक सूत्रार्थोपसंपत् ये तीन भेद होते हैं। १. कक्ता सा कथं भवतीत्याह।
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