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[मूलाचारे दीर्घत्वमादेः । ओघोविय-औधिक: सामान्यरूपः। पविभागीओ-पदानां अर्थप्रतिपादकानां विभागो भेदः स विद्यते यस्यासौ पदविभागिकश्च । एवकारोऽवधारणार्थः । स सामाचारः औधिक-पदविभागिकाभ्यां द्विविध एव।
तयोर्भेदप्रतिपादनार्थमाह-दसहा-दशधा दशप्रकारः। ओघो-औधिकः । भणिओ-भणितः । अणेयधा-अनेकधाऽनेकप्रकारः। पदविभागीय-पदविभागी च । य औधिक: स दशप्रकारोऽनेकधा च पदविभागी॥१२४॥
आद्यस्य ये दशप्रकारास्ते केऽत: प्राह
इच्छा-मिच्छाकारो तधाकारो व प्रासिआ णिसिही।
प्रापुच्छा पडिपुच्छा छंदणसणिमंतणा य उवसंपा॥१२५।।
इच्छामिच्छाकारो-इच्छामभ्युपगमं करोतीति इच्छाकार आदरः, मिथ्या व्यलीकं करोतीति मिथ्याकारो विपरिणामस्य त्यागः, एकस्य कारशब्दस्य निवृत्तिः, समासान्तस्य वा' कृदुत्पत्तिः । तधाकारोयतथाकारश्च सदर्थे प्रतिपादिते एवमेव वचनं । आसिया-आसिका आपृच्छ्य गमनं । णिसिही-निषेधिका परिपृच्छ्य प्रवेश । आयुच्छा-आपृच्छा स्वकार्य प्रति गुर्वाद्यभिप्रायग्रहणं । पडिपुच्छा–प्रतिपृच्छा निषिद्धस्य अनिषिद्धस्य वा वस्तुनस्तद्ग्रहणं प्रति पुनः प्रश्नः । छंदण-छन्दनं छन्दानुवर्तित्वं यस्य गृहीतं किंचिदुपकरणं
दीर्घ हो गया है। अर्थात् समाचार को ही प्राकृत में सामाचार कहा है । सामान्य रूप समाचार औधिक है और अर्थप्रतिपादक पदों का विभाग-भेद, वह जिसमें पाया जाय वह पदविभागी समाचार है। गाथा में एवकार शब्द निश्चय के लिए है । अर्थात् वह समाचार औधिक-संक्षेप और पदविभागिक-विस्तार के भेद से दो प्रकार का ही है।
अब इन दोनों के भेद को बताते हैं औधिक के दश भेद हैं तथा पदविभागी के अनेक भेद हैं।
औधिक समाचार के दश भेद कौन हैं ? उन्हीं को बताते हैं
गाथार्थ-इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आसिका, निषेधिका, आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छन्दन, सनिमन्त्रणा और उपसंपत् ये दश भेद औधिक समाचार के हैं ॥१२॥
प्राचारवृत्ति-इच्छा-इष्ट या स्वीकृत को करना इच्छाकार है अर्थात् आदर करना। मिथ्या--असत्य करना मिय्याकार है अर्थात् अशुभ-परिणाम का त्याग करना। यहाँ 'इच्छामिय्याकारों' पद में प्रथम इच्छा शब्द के कार शब्द का व्याकरण के नियम से लोप हो गया है अथवा इच्छा और मिथ्या इन दो पद का समास करके पुनः कृदन्त के प्रत्यय का प्रयोग हआ है यथा-'इच्छा च मिथ्या च इच्छामिय्ये, इच्छामिथ्ये करोतीति इच्छामिथ्याकारः' ऐसा व्याकरण से सिद्ध हुआ पद है । सत् अर्थात् प्रशस्त अर्थ के प्रतिपादित किये जाने पर ऐसा ही है' इस प्रकार वचन बोलना तथाकार है। पूछकर गमन करना आसिका है और पूछकर प्रवेश करना निषेधिका है । अपने कार्य के प्रति गुरु आदि का अभिप्राय लेना या पूछना आपच्छा है । निषिद - १.क वा सकू।
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