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४. सामाचाराधिकारः
एवं संक्षेपस्वरूपं प्रत्याख्यानमासन्नतममृत्योाख्याय यस्य पुनः सत्यायुषि निरतिचारं मूलगुणा निर्वहति तस्य कथं प्रवृत्तिरिति पृष्टे तदर्थ चतुर्थमधिकारं सामाचाराख्यं नमस्कारपूर्वकमाह
तेलोक्कपूयणीए अरहते वंदिऊण तिविहेण ।
वोच्छं सामाचारं समासदो प्राणपुग्वीयं ॥१२२॥ तेलोक्कपूयणीए-त्रयाणां लोकानां भवनवासिमनुष्यदेवानां पूजनीया वन्दनीयास्त्रिलोकपूजनीयास्तान् त्रिकालग्रहणार्थमनीयेन निर्देशः । अरहंते-अहंतः घातिचतुष्टयजेतृन् । वंदिऊण-वन्दित्वा। तिविहेणत्रिविधेन मनोवचनकायः । वोच्छं-वक्ष्ये । सामाचारं-मूलगुणानुरूपमाचारं । समासदो-समासतः संक्षेपेण 'कायाः' तस् । आणुपुत्वीयं-आनुपूर्व्या अनुक्रमेण । त्रिविधं व्याख्यानं भवति पूर्वानुपूा, पश्चादानुपूर्व्या यत्र तत्रानुपूर्व्या च। तत्र पूर्वानुपूर्व्या ख्यापनार्थमानुपूर्वीग्रहणं क्षणिकनित्यपक्षनिराकरणार्थं च । क्त्वान्तेन
जिनकी मृत्यु अति निकट है ऐसे साधु के लिए संक्षेपस्वरूप प्रत्याख्यान का व्याख्यान करके अब जिनकी आयु अधिक अवशेष है, जो निरतिचार मूलगुणों का निर्वाह करते हैं, उनकी प्रवृत्ति कैसी होती है ? पुनः ऐसा प्रश्न करने पर उस प्रवृत्ति को बताने के लिए श्री वट्टकेर आचार्य सामाचार नाम के चतुर्थ अधिकार को नमस्कारपूर्वक कहते हैं
गाथार्थ-तीन लोक में पूज्य अर्हन्त भगवान् को मन-वचन-काय पूर्वक नमस्कार करके अनुक्रम से संक्षेपरूप में सामाचार को कहूँगा ॥१२२॥
- प्राचारवत्ति-अधोलोक सम्बन्धी भवनवासी देव, मध्यलोक सम्बन्धी मनुष्य और ऊर्ध्वलोक सम्बन्धी देव इन तीनों लोक सम्बन्धी जीवों से पूजनीय-वन्दनीय भगवान् त्रिलोकपूजतीय कहे गये हैं। यहाँ पर त्रिकाल को ग्रहण करने के लिए अनीय प्रत्यान्त पद लिया है अर्थात् पूज् धातु में अनीय प्रत्यय लगाकर प्रयोग किया है। घाती चतुष्टय के जीतने वाले अर्हन्त देव हैं ऐसे त्रिलोकपूज्य अर्हन्त देव को पन-वचन-काय से नमस्कार करके मैं मूलगुणों के अनुरूप आचार रूप सामाचार को अनुक्रम से संक्षेप में कहूँगा । आनुपूर्वी अर्थात् अनुक्रम को तीन प्रकार से माना गया है-पूर्वानुपूर्वी, पश्चात् आनुपूर्वी और यत्रतत्रानुपूर्वी। अर्थात् जैसे चौबीस तीर्थंकरों में वृषभ आदि से नाम ग्रहण करना पूर्वानुपूर्वी है । वर्धमान, पार्श्वनाथ से नाम लेना पश्चात् आनुपूर्वी है और अभिनन्दन चन्द्रप्रभु आदि किसी का भी नाम लेकर कहीं से भी कहना यत्रतत्रानुपूर्वी है । यहाँ पर मूलाचार ग्रन्थ में पूर्वानुपूर्वी का प्रयोग है अर्थात् पहले मूलगुणों को बताकर पुनः प्रत्याख्यान संस्तर अधिकार के अनन्तर क्रम से अब सामाचार
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