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संक्षेपात्यात्यानाधि
[१०५ मुण्डाः समये वर्णिता यतोऽतो न स्वमनीषया व्याख्यानमेतदिति । अथवा एतैर्मुण्डेर्मुण्डधारी भवति नान्यः सावचैरिति।
इत्याचारवृत्तौ वसुनन्दिविरचितायां तृतीयः परिच्छेदः ॥३॥
जाते हैं जब तक कि इन दश प्रकार के मुण्डन से सहित नहीं हैं ऐसा अभिप्राय है। इसलिए इन्द्रियों का नियन्त्रण और हाथ-पैर तथा शरीर की अप्रशस्त क्रियाओं का रोकना एवं मन में अशुभ परिणामों का नहीं होने देना ये सब संयम शिरोमुण्डन के साथ-साथ ही आवश्यक हैं।
इस प्रकार से श्री वट्टकेर आचार्य विरचित मूलाचार ग्रन्थ की श्री वसुनन्दि आचार्य कृत 'आचारवृत्ति' नामक टीका में तृतीय परिच्छेद पूर्ण हुआ।
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