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बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तवाधिकारः ]
उपसंहारद्वारेणाराधनाफलमाह
एवं पच्चक्खाणं जो काहदि मरणदेसयाल म्मि । धीरो अमूढसण्णो सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ॥ १०५ ॥
एवं - एतत् । पच्चक्खाणं - प्रत्याख्यानं । जो काहदि - यः कुर्यात् । मरणदेसयालम्मि – मरणदेशकाले । धीरो - धर्मोपेतः । अमूढसणी - अमृढसंज्ञः आहारादिसंज्ञास्वलुब्धः । सो— सः । गच्छदिगच्छति । उत्तमं ठाणं उत्तमं स्थानं निर्वाणमित्यर्थः । मरणदेशकाले एतत्प्रत्याख्यानं यः कुर्यात् धीरोऽपूढसंज्ञश्च स गच्छत्युत्तमं स्थानमिति ॥ १०५ ॥
अवसान मंगलार्थं क्षपकसमाध्यर्थं चाह—
वीरो जरमरणरिऊ वीरो विण्णाणणाणसंपण्णो । लोगस्सुज्जोय रो जिणवरचंदो दिसदु बोधि ॥ १०६ ॥
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वीरो - वर्धमानभट्टारकः । जरमरणरिक—– जरामरणरिपुः । विष्णाणणाणसंपण्णी - विज्ञानं चारित्रं, ज्ञानमवबोधस्ताभ्यां सम्पन्नों युक्तः । वीरो - वीरः । लोगस्स - लोकस्य भव्यजनस्य पदार्थानां वा । उज्जोययरो - उद्योतकरः प्रकाशकरः । जिणवरचं दो - जिनवरचन्द्रः । दिसदु-दिशतु ददातु । बोधिंसमाधि सम्यक्त्वपूर्व काचरणं वा । जिनवरचन्द्रो जरामरणशत्रुः चारित्रज्ञानादिसंयुक्तो लोकस्य चोद्योतकरो वीरो मह्यं दिशतु बोधिमिति सम्बन्धः ॥ १०६॥
किंचिदपि निदानं न कर्तव्यं, कर्तव्यं चेत्याह
अब उपसंहार द्वारा आराधना का फल कहते हैं
गाथार्थ – जो धीर और संज्ञाओं में मूढ़ न होता हुआ साधु मरण के समय इस उपयुक्त प्रत्याख्यान को करता है वह उत्तम स्थान को प्राप्त कर लेता है ।। १०५ ॥
आचारवृत्ति-धैर्यवान्, आहार, भय आदि संज्ञाओं में लम्पटता रहित जो साधु मरण के समय उपर्युक्त प्रत्याख्यान को करते हैं वे उत्तम अर्थात् निर्वाण स्थान को प्राप्त कर
लेते हैं ।
अब अन्तिम मंगल और क्षपक की समाधि के लिए कहते हैं
गाथार्थ - वीर भगवान् जरा और मरण के रिपु हैं, वीर भगवान् विज्ञान और ज्ञान से सम्पन्न हैं, लोक के उद्योत करनेवाले हैं । ऐसे जिनवर चन्द्र - वीर भगवान् मुझे बोधि प्रदान करें ।। १०६॥
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श्राचारवृत्ति -- विज्ञान को चारित्र और ज्ञान को बोध कहा है । अर्थात् विशेष ज्ञान भेद विज्ञान है । वह सराग और वीतराग चारित्रपूर्वक होता है अतः जो यथाख्यात चारित्र और केवलज्ञान आदि से परिपूर्ण हैं, जरा और मरण को नष्ट करनेवाले हैं, लोक अर्थात् भव्य जीव के लिए प्रकाश करनेवाले हैं अथवा पदार्थों के प्रकाशक हैं ऐसे वर्धमान भगवान् मुझे बोधिसमाधि अथवा सम्यक् सहित आचरण को प्रदान करें ।
क्या किंचित् भी निदान नहीं करना चाहिए ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य कहते हैं कि कुछ निदान कर भी सकते हैं
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