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[मूलाचारे काले सम्यक्त्वस्य यद्विराधनं तन्मरणस्यैव साहचर्यादिति । अथवार्तरौद्रध्यानसहितं यन्मरणं तत्तस्य विराधनमित्युक्तम् । देवदुग्गई—देवदुर्गतिः भवनवासिवानव्यन्तरज्योतिष्कादिषूत्पत्तिः। दुल्लहा य-दुर्लभा दुःखेन लभ्यते इति दुर्लभा च । किर-किल । अयं किलशब्दोऽनेकेष्वर्थेषु विद्यते, तत्र परोक्षे द्रष्टव्यः आगमे एवमु. क्तमित्यर्थः । बोही-बोधिः सम्यक्त्वं रत्नत्रयं वा । संसारो य--संसारश्च चतुर्गतिलक्षणः । अणंतो-अनन्तः अर्द्धपुद्गलप्रमाणः कुतोऽस्यानन्तत्वं? केवलज्ञानविषयत्वात्। होइ-भवति । पुणो-पुनः। आगमे कालेआगमिष्यति समये । मरणकाले सम्यक्त्वविराधने सति, दुर्गतिर्भवति, बोधिश्च दुर्लभा, आगमिष्यति काले संसारश्चानन्तो भवतीति । अत्रैवाभिसम्बन्धे प्रश्नपूर्वकं सूत्रमाह
का देवदुग्गईमो का बोही केण ण बुज्झए मरणं ।
केण व अणंतपारे संसारे हिंडए जीरो ॥६२॥ की विराधना है वह मरण के ही साहचर्य से है अतः मरण की विराधना से मरण समय सम्यक्त्व की विराधना ऐसा अर्थ लेना चाहिए। अथवा आर्त-रौद्र ध्यान सहित जो मरण है सो ही मरण की विराधना शब्द से विवक्षित है ऐसा समझना। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क आदि देवों में उत्पत्ति होना देवदुर्गति है। ऐसी देवदुर्गतियों में उसका जन्म होता है यह अभिप्राय हुआ। 'किल' शब्द अनेक अर्थों में पाया जाता है किन्तु यहाँ उसको परोक्ष अर्थ में लेना चाहिए। इससे यह अर्थ निकला कि आगम में ऐसा कहा है कि उस जीव के सम्यक्त्व या रत्नत्रय रूप बोधि, बहुत ही कठिनाई से प्राप्त होने से, अतीव दुर्लभ है । वह जीव अगामी काल में इस चतुर्गति रूप संसार में अनन्त काल तक भटकता रहता है।
प्रश्न-एक बार सम्यक्त्व होने पर संसार अनन्त कैसे रहेगा ? क्योंकि वह अर्द्धपुद्गल प्रमाण ही तो है अतः अर्द्धपुद्गल को अनन्त संज्ञा कैसे दी ?
उत्तर-यह अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण काल भी अनन्त नाम से कहा गया है क्योंकि यह केवलज्ञान का ही विषय है।
तात्पर्य यह हुआ कि यदि मरणसमय सम्यक्त्व छूट जावे तो यह जीव देवदुर्गति में जन्म ले लेता है । पुनः इसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति अथवा रत्नत्रय की प्राप्ति बड़ी मुश्किल से ही हो सकती है अतः यह जीव अनन्तकाल तक संसार में भ्रमण करता रहता है।
विशेषार्थ—यहाँ ऐसा समझना कि सम्यक्त्वरहित यह जीव भवनत्रिक में जन्म लेता है तथा आदि शब्द से वैमानिक देवों में भी आभियोग्य और किल्विषक जाति के देवों में जन्म ले लेता है । क्योंकि वहाँ पर भी अनेक जाति के देवों में या वाहन जाति के तथा किल्विषक जाति के देवों में सम्यग्दृष्टि का जन्म नहीं होता।
पुनः इसी सम्बन्ध में प्रश्नपूर्वक सूत्र कहते हैं
गाथार्थ-देवदुर्गति क्या है ? बोधि क्या है ? किससे मरण नहीं जाना जाता है ? और किस कारण से यह जीव अनन्तरूप संसार में परिभ्रमण करता है ॥६२॥
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