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मूलगुणाधिकारः]
[१९ छादालदोससुद्ध कारणजुत्तं विसुद्धणवकोडी।
सीदादीसमभुत्ती परिसुद्धा एसणासमिदी ॥१३॥ ___ छादालदोससुद्ध-षड्भिरधिका चत्वारिंशत् षट्चत्वारिंशत् षट्चत्वारिंशतश्च [षट्चत्वारिशच्च] ते दोषाश्च षट्चत्वारिंशद्दोषाः तैः शुद्धं निर्मलं षट्चत्वारिंशद्दोषशुद्धं उद्गमोत्पादनैषणादिकलंकरहितम् । कारणजुस-कारणनिर्मितैर्युक्त सहितं कारणयुक्त असातोदयजातबुभुक्षाप्रतीकारार्थ वैयावृत्यादिनिमित्तं च । विसुखणवकोडी-नव च ता: कोटयश्च विकल्पाश्च नवकोटयः विशुद्धा निर्गता नवकोटयो यस्माद्विशुद्धनवकोटि मनोवचनकायकृतकारितानुमतिरहितम् । सोदादि-शीतमादिर्यस्य तच्छीतादि शीतोष्णलवणसरसविरसरूक्षादिकम् । समभुत्ती-समा सदृशी भुक्तिर्भोजनं समभुक्तिः । शीतादौ समभुक्तिः शीतादिसमभुक्तिः शीतोष्णादिषु भक्ष्येषु रागद्वेषरहितत्वम् । परिसुद्धा--समन्ततो निर्मला। एसणासमिदी-एषणासमितिः । षट्चत्वारिंशद्दोषरहितं यदेतत पिंडग्रहणं सकारणं मनोवचनकायकृतकारितानुमतिरहितं च शीतादी समभुक्तिश्च, अनेन न्यायेनाचरतो निर्मलैषणासमितिर्भवतीत्यर्थः ।। आदाननिक्षेपसमितिस्वरूपं निरूपयन्नाह
णाणुहि संजमुहिं सउचुहि अण्णमप्पमुहिं वा ।
पयदं गहणिक्खेवो समिदी पादाणणिक्खेवा ॥१४॥ णाणुवहि-ज्ञानस्य श्रुतज्ञानस्योपधिरुपकरणं ज्ञानोपधिर्ज्ञाननिमित्तं पुस्तकादि । संजमवहिसंयमस्य पापक्रियानिवृत्तिलक्षणस्योपधि'रुपकरणं संयमोपधिः प्राणिदयानिमित्तं पिच्छिकादिः । सउचुवहि
गाथार्थ छयालीस दोषों से रहित शुद्ध, कारण से सहित, नव कोटि से विशुद्ध और शीत-उष्ण आदि में समान भाव से भोजन करना यह सम्पूर्णतया निर्दोष एषणा समिति है ॥१३॥
प्राचारवृत्ति-उद्गम, उत्पादन, एषणा आदि छयालीस दोषों से शुद्ध आहार निर्दोष कहलाता है । असाता के उदय से उत्पन्न हुई भूख के प्रतीकार हेतु और वैयावृत्य आदि के निमित्त किया गया आहार कारणयुक्त होता है। मन-वचन-काय को कृत-कारित-अनुमोदना से गणित करने पर नव होते हैं । इन नवकोटि-विकल्पों से रहित आहार नव-कोटि-विशद्ध है। ठण्डा, गर्म, लवण से सरस या विरस अथवा रूक्ष आदि भोजन में समानभाव अर्थात् शीत, उष्ण आदि भोज्य वस्तुओं में राग-द्वेषरहित होना, इस प्रकार सब तरफ से निर्मल-निर्दोष याहार ग्रहण करना एषणासमिति होती है । तात्पर्य यह है कि छयालीस दोषरहित जो आहार का ग्रहण है जो कि कारण सहित है और मन-वचन-कायपूर्वक कृत-कारित-अनुमोदना से रहित तथा शीतादि में समता भावरूप है वह साधु के निर्मल एषणासमिति होती है।
अब आदाननिक्षेपण समिति के स्वरूप का निरूपण करते हुए कहते हैं
गाथार्य-ज्ञान का उपकरण, संयम का उपकरण, शौच का उपकरण अथवा अन्य भी उपकरण को प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करना और रखना आदाननिक्षेपण समिति है ॥१४॥
प्राचारवृत्ति-ज्ञान-श्रुतज्ञान के उपधि-उपकरण अर्थात् ज्ञान के निमित्त पुस्तक आदि ज्ञानोपधि हैं । पापक्रिया से निवृत्ति लक्षणवाले संयम के उपकरण अर्थात् प्राणियों की १. धिः कारणं।
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