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[मूलाधारे
तथा मनसा न चिन्तयामि, नाप्यन्यं भावयामि, नानुमन्ये । एवं अशुभस्थापनामेनां कायेन न करोमि, न कारयामि, नानुमन्ये, तथा वाचा न भणामि, न भाणयामि, नानुमन्ये, तथा मनसा न चितयामि, नाप्यन्यं भावयामि नानुमन्ये । तथा सावधं द्रव्यं क्षेत्र कालं भावं च न सेवे, न सेवयामि, सेवन्तं, [सेवमानं] नानुमन्ये । तथा वचसा त्वं सेवस्वेति न भणामि, न भाणयामि, नापि चिन्तयामीति । पच्चक्खाणं-प्रत्याख्यानं परिहरणं अयोग्यग्रहणपरित्याग: । णेयं-ज्ञातव्यम् । अणागयं च-अनागतं चानुपस्थितं च । अथवा अनागते दुरेणागते काले । आगमे काले-आगते उपस्थिते । अथवा आगमिष्यति सन्निकृष्टे काले मुहर्तदिवसादिके। नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावानां षण्णां अनागतानां त्रिकरणैर्यदेतत् परिवर्जनं आगते चोपस्थिते च यदेतद्दोपपरिवर्जनं तत्प्रत्याख्यानं ज्ञातव्यमिति । अथवा दूरे भविष्यति काले आगमिष्यति चासन्ने वर्तमाने तेषां षण्णामपि अयोग्यानां वर्जनं प्रत्याख्यानम् । अथवा अनागते काले अयोग्यपरिवर्जनं नामादिषट्प्रकारं यदेतदागतं मनोवचनकायैः तत्प्रत्याख्यानं ज्ञातव्यमिति । अथ प्रतिक्रपणप्रत्याख्यानयोः को विशेष इति चेन्नैष दोषः, अतीतकालदोषनिहरणं प्रतिक्रमणम् । अनागते वर्तमाने च काले द्रव्यादिदोषपरिहरणं प्रत्याख्यानमनयोर्भेदः । तपोऽर्थ निरवद्यस्यापि द्रव्यादेः परित्यागः प्रत्याख्यानं, प्रतिक्रमणं पूनर्दोषाणां निर्हरणाय वेति ।।
करूँगा। इसी प्रकार अशुभ स्थापना को न काय से करूँगा, न कराऊँगा, न ही करते हुए की अनुमोदना करूंगा; उसी प्रकार वचन से अशुभ स्थापना को न कहूँगा, न कहलाऊँगा और न ही अनुमोदना करूँगा तथा मन से उस अशुभ स्थापना का न चिन्तवन करूँगा, न अन्य से भावना कराऊँगा और न ही करते हुए की अनुमोदना करूँगा। इसी प्रकार से सावद्य-सदोष द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का न सेवन करूँगा, न सेवन कराऊँगा और सेवन करते हुए की अनुमोदना कराऊँगा; उसी प्रकार इन सदोष द्रव्यादि का 'तुम सेवन करो' ऐसा वचन से न कहूँगा, न कहलाऊँगा, न कहते हुए की अनुमोदना करूँगा । न मन से चिन्तवन करूँगा, न कराऊँगा, न करते हुए की अनुमोदना करूँगा । इस प्रकार अयोग्य के ग्रहण का परित्याग करना प्रत्याख्यान है।
उपस्थित होनेवाला काल अनागत काल है अथवा यहाँ अनागत शब्द से दूर भविष्य में आनेवाला काल लिया गया है और आगत शब्द से उपस्थित काल अर्थात् निकट में आनेवाले मुहूर्त दिन आदि रूप भविष्य काल को लिया है। इन अनागतसम्बन्धी नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों का मन-वचन-काय से वर्जन है और उपस्थित हए काल में जो दोषों का वर्जन है वह प्रत्याख्यान है । अथवा दूरवर्ती भविष्यकाल तथा आनेवाले निकटवर्ती वर्तमान काल में इन अयोग्यरूप नाम स्थापना आदि छहों का त्याग करना प्रत्याख्यान है। अथवा अनागतकाल में अयोग्यरूप नाम आदि छह प्रकार जो आयेंगे उनका मन-वचन-काय से त्याग करना प्रत्याख्यान है।
प्रश्न--प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान में क्या अन्तर है ?
उत्तर--अतीतकाल के दोषों का निराकरण करना प्रतिक्रमण है और अनागत तथा वर्तमानकाल में होनेवाले द्रव्यादिसम्बन्धी दोषों का निराकरण करना प्रत्याख्यान है, यही इन दोनों में भेद है । अथवा तपश्चरण के लिए निर्दोष द्रव्य आदि का भी त्याग करना प्रत्याख्यान है तथा दोषों के निराकरण करने हेतु ही प्रतिक्रमण होता है। १क यदेप्तेषां प।२ क तदर्थं ।
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