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१८ )
'कारिका' के लेखक एक माननीय ऋषि थे जो गौड़ देश के निवासी थे ।
पहले अध्याय को शास्त्रीय कहा गया है क्योंकि इसमें उपनिषद्-मंत्रों के साथ बीच-बीच में कारिका के श्लोक दिये गये हैं । श्री गौड़पाद के २६ श्लोक उपनिषद् के प्रकरणों पर शब्दशः टोका नहीं हैं । 'कारिका' में तो उपनिषद् के भावों का इस ढंग से पुनविन्यास किया गया है कि पाठकों को इस ग्रंथ का भावार्थ आसानी से समझ पा जाय और वह है 'तुरीय' अर्थात पूर्ण अद्वैत सत्य ।
जिन कथनों का भाष्यकार के विशेष विषय से कोई लाभप्रद सम्बन्ध नहीं है उन्हें छोड़ दिया गया है । साथ ही 'कारिका' में उन भावों को स्पष्ट रूप से समझाया गया है जिनकी ओर संकेत-मात्र किया गया है अथवा जिन को उपनिषद् में सूक्ष्मता से दिया गया है। इस अध्याय को 'अगम प्रकरण' कहा जाता है क्योंकि माण्डूक्योपनिषद् में श्री गौड़पाद ने 'दर्शन-शास्त्र' का एक अनुपम चित्रकार की तरह चित्रण किया है । प्रकरण-पुस्तक एक निदेशिका है जिस में 'उपदेश-ग्रन्थ' का समावेश होता है। इस नाम को सार्थक करने वाली इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय के अन्त में कतिपय लाभप्रद एवं अत्यन्त प्रभावपूर्ण निर्देश दिये गये हैं जिनके अभ्यास करते रहने से साधक परिपक्व अवस्था को प्राप्त करके पूर्ण सत्य को, जोकि इस ग्रंथ का मूल विषय है, अनुभव कर सकता है ।
शास्त्र को आधार मान कर श्री गौड़पाद ने चेतना की तीन अवस्थाओं और इनके अनुभवों का विश्लेषण करके सनातन सत्य को हमारी बुद्धि की परिधि में ला खड़ा किया है क्योंकि यह जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्थामों से परे प्रात्मा में अधिष्ठित है । इसे 'तुरीय' कहते हैं । शास्त्र के उपदेश और 'कारिका' के विचारों का विश्लेषण करने से हम इन सब की व्याख्या कर सकते हैं जो नीचे दी गयी तालिका से स्पष्ट हो जायेगी :
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