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अगम प्रकरण
श्री गौडपाद द्वारा रचित ' कारिका' सहित 'माण्डूक्योपनिषद्' के इस अध्याय को अगम प्रकरण' कहा जाता है क्योंकि इसमें कारिका की छन्दरचना के अतिरिक्त उपनिषद् के अंश भी मिलते हैं । मैं पहले कह चुका हूँ कि प्रोफेसर डॉयसन के मतानुसार सारे का सारा ग्रन्थ गौड़पाद द्वारा रचित है ।
अपनी पुस्तक 'डेर अल्टेयर वेदान्त' में डाक्टर वालेसर ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि गौड़पादीय कारिका चार अध्यायों वाली एक पुस्तक है और इससे रचयिता के नाम का कुछ पता नहीं चलता । इसकी राय में उस समय वेदान्त-मत गौड़ देश (उत्तरी बंगाल) में फैला हुआ था और वहाँ के कुछ सिद्धान्तों को चार अध्यायों में संहिताबद्ध किया गया और इन्हें मिला कर 'गौड़पादीय कारिका' का नाम दिया गया । संक्षेप में, "यह एक ऐसी पुस्तक है जिससे लेखक का पता चलता है न कि लेखक के द्वारा रचित पुस्तक का ।" इस महान् फेञ्च विद्वान् को इस कारण यह भ्रम हो गया कि 'गौड़पादीय' शब्द का प्रयोग बहुवचन में किया गया है । वस्तुतः सम्मानित व्यक्तियों को सदा बहुवचन में सम्बोधित किया जाता है । यह बात न केवल संस्कृत भाषा में ही पायी जाती है बल्कि अंग्रेजी में भी, जैसे राजा के लिए 'हम' का शब्द | 'गौड़' शायद किसी जाति का नाम हो और 'पाद' एक प्रतिष्ठा-सूचक शब्द । इस प्रकार हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि
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