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वेदान्त और मीमांसा के अनुयायी यह बात मानने में सहमत हैं कि शास्त्र स्वतः निष्ठा के लिए एक बड़ी युक्ति का महत्व रखते हैं और शास्त्रों की सत्ता अनुल्लंघनीय है । इस पर भी ये दोनों श्रुति की कई व्यवस्थाओं को स्वीकार करते हैं जिनमें से सबसे अधिक महत्व वाली व्यवस्था है 'उप-पथि' (तर्क-युक्त विवेक) । यदि श्रुति-ग्रन्थों में बार बार इस तथ्य की घोषणा को जाय कि 'अग्नि ठंडी है' तो भी अग्नि को स्पर्श नहीं किया जायेगा । ऐसे स्थलों में हमें यह समझ लेना चाहिए कि यह वाक्य लाक्षणिक शैली में लिखा गया है और इस संदर्भ में इसका उचित अर्थ किया जाय । प्रस्तुत यज्ञ में हम जिस ग्रन्थ का अध्ययन करने जा रहे हैं उसके मंत्रों में 'सत्य' के स्वरूप का वर्णन किया गया है और 'कारिका' में इस विचारधारा का अन्वेषण करने का यत्न किया गया है। श्री गौड़पाद ने अपनी कारिका में हमारे मस्तिष्क के लिए उचित सामग्री का संग्रह कर दिया है, यहाँ तक कि तर्क और युक्ति द्वारा बहुत अधिक मात्रा में हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है।
कारिका को चार भागों में विभक्त किया गया है । इसमें कुल २१५ पद्य हैं- 'अगम' प्रकरण ( शास्त्र -सम्बन्धी खण्ड २८) 'वैतथ्य' प्रकरण ( माया-सम्बन्धी खण्ड ३८), 'अद्वैत' प्रकरण ( अद्वैतवाद खण्ड ४८) और 'अलाटशान्ति' प्रकरण ( अग्नि शिखा का शान्त होना खण्ड १००)।
अगम प्रकरण में इस उपनिषद् के १२ मंत्र दिये गये हैं और, जहाँ जहाँ श्रति की व्याख्या एवं सम्मति को स्पष्ट रूप से बताना आवश्यक समझा गया, वहाँ वहाँ कारिका के पदों का समावेश किया गया है । हम पहले भी कह चुके हैं कि कारिका भाष्य नहीं है और न ही इसे टीका समझना चाहिए । शास्त्र के किसी एक पहलू को ठीक ढंग से स्पष्ट करना ही एक टीकाकार का काम है । उसका कर्तव्य है कि वह किसी दर्शन-शास्त्र की शैली के अंश की व्याख्या करे । इसके विपरीत शास्त्र द्वारा किसी विशेष विचारधारा को पूर्ण रूप से समझाने की व्यवस्था की जाती है ।
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