Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अहि
प्राचीन चरित्रकोश
अहीना
अहि-इन्द्र का शत्रु (ऋ. १.५१.४)। यह जब बिंदुओंसे इन दोनों को जीवित करते रहते हैं। इस लिये तुम निद्रित था, तब इन्द्र ने इसे मारकर सप्तसिंधू को मुक्त भ्रमरों को मार डालो। अभी वे सब राक्षसों के निद्रास्थान किया (ऋ. २.१२.३)।
में हैं। यह मालूम होते ही, हनुमान ने असंख्य भ्रमर अहित-मणिवर को देवजनी से उत्पन्न पुत्र। इसे मार डाले । एक भ्रमर उसे शरण आया। उसे प्राणदान गुह्यक ऐसा साधारण नाम है।
दे कर, हनुमान ने उसे अहिरावण की पत्नि का मंचक
भीतर से खोखला करने के लिये कहा, तथा स्वयं राम के ___ अहिरावण-महिरावण-पाताल में, अहिरावण तथा
पास गया। इतने में राम के बाण से सब राक्षसों की मृत्यु महिरावण नामक रावण के दो मित्र थे। इन्हें रावण ने
हो गई। तदनंतर हनुमान के आग्रह पर, राम नागकन्या राम का नाश करने के लिये कहा । परंतु सुवेल पर्वत पर
के मंदिर में गया, तथा पर्यंक को हाँथ लगाते ही वह राम की संपूर्ण सेना अभेद्य दीवाल के भीतर होने के
टूट जाने के कारण, उसे तीसरे जन्म में पत्नी बनाने का कारण, इन्होंने आकाश से शिबिर में छलाँग लगाई।
। आश्वासन दे कर दोनों सुवेल पर लौट आये। रामवचन पश्चात् , शिला पर सुप्त रामलक्ष्मण को यह शिलासहित
पर विश्वास रख कर, अहिरावण की पत्नी ने अग्नी में पाताल में ले गये। परंतु हनुमान इनका पीछा करते
देहत्याग किया (आ. रा. सार. ११)। निकुंभिला नगर आया। कपोत कपोती के संवाद से हनुमान को पता चला कि, दैत्य रामलक्ष्मण को देवी के
अहिर्बुध्न्य--एक अन्तरिक्षस्थ देवता (नि. ५.४) सामने बलि देने के लिये रसातल में ले गये हैं। उधर
यह एक वृत्र का स्वरूप है। ऋग्वेद में इसके लिये स्वतंत्र जाते समय, हनुमान को द्वार पर मकरध्वज मिला।
सूक्त न हो कर, कुछ ऋचाओं में इसका स्तवन है। यह प्रश्नोत्तर में, दोनों का पितापुत्र का नाता निकला (मकर
एक गार्हपत्य अग्नी का नाम है (वा. सं. ५. ३३; ऐ. ध्वज देखिये)। मकरध्वज ने हनुमान को सुझाया कि,
| ब्रा. ३. ३६; तै. ब्रा. ११.१०.३)। . कामाक्षी के मंदिर में जा कर बैठा जावे तथा कार्य किया जावे।
। यह रुद्र का नाम है (भा. ६.६.१८)। . सुबह वाद्यों की ध्वनि में राक्षस रामलक्ष्मण को वहाँ ले
२. यह दुष्ट राक्षसों के संहारार्थ' सुदर्शनंचक्र की कर आये। तब देवी का स्वर निकाल कर हनुमान ने उन्हें
आराधना कर रहा था। राक्षस इसके संहारार्थ आते ही. कहा कि, पूजा झरोखे से की जावे। उसके अनुसार, राक्षसों
चक्र प्रगट हो कर राक्षसों का नाश हुआ (स्कन्द. ३.१.. ने देवी को बहुत से उपचार अर्पण किये, तथा रामलक्ष्मण
२३)। . . को भी झरोखे से भीतर छोड़ा। तदनंतर तीनों ने मिल । ३. कश्यप तथा सुरभि का पुत्र ( शिव. शत. १८)।
अहिशुव-इन्द्र का शत्रु (ऋ. ३२.२)। रावण के लहू से, पुनः वैसे ही राक्षस निर्माण होने लगे। अहीन-(सो. क्षत्र.) सहदेव का पुत्र । अदीन तब हनुमान ने अहिरावण की पत्नी को इसे मारने का | पाठभेद है। उपाय पूछा । वह बोली कि, मैं नागकन्या हूँ। इस दुष्ट ने २. (सो. कुरु. भविष्य.)। विष्णु के मतानुसार उदयनबलात्कार से मुझे यहाँ लाया। महिरावण भी मुझ पर लुब्ध | पुत्र। है। परंतु मैं उसके अनुकूल नही होती । इतना कह कर अहीनगु-अनोह का नामांतर । उसने कहा कि, यदि राम मुझसे विवाह करेगा, तो मैं अहीनज-(सू. इ.) भविष्य के मतानुसार द्वारका उपाय बताती हूँ। हनुमान ने कहा कि, राम के भार से का पुत्र । इसने १०,००० वर्षों तक राज्य किया। अगर तुम्हारा मंचक नहीं टूटा, तो राम तुम से विवाह कर अहीनर-अनी राजा का नामांतर। लेंगे। तब उसने बताया कि, पहले जब कुछ लड़के भ्रमरों २. (सो.) भविष्य के मतानुसार उद्यान का पुत्र । को काँटे चुभा रहे थे, तब उन्हें इन दोनों भाईयों ने मुक्त | अहीना आश्वत्थ्य-इसने सावित्राग्नी के ज्ञान से किया। इस लिये प्रत्युपकार करने के हेतु, वे भ्रमर अमृत- अमरत्व संपादन किया (ते. ब्रा. ३.१०, ९.१०)।