________________
अनगार
फलमविकलमलघीयो लघुपरिणति जायतेस्य सुस्वादु ।
प्रीणितसकलप्रणयिप्रणतस्य समुन्नतेः सुतरोः ॥ समस्त-प्रणयी लोगोंको तृप्त करनेवाले किंतु नम्र रहनेवाले इस समीचीन वृक्षको श्रेष्ठ उन्नतिका. फल शीघ्र ही पकनेवाला महान् पूर्ण और मुकादु होता है। इस कथनसे समृद्धिको पाकर भी नम्र रहनेवाले किंतु उसका परोपकारादिकमें उपयोग करनेवाले सत्पुरुषको जो कुछ, और जैसा फल प्राप्त होता है वह बताया गया है ।
इसी प्रकार ग्रंथकार आगेके पद्यमें पूर्वार्धके द्वारा, इस कलिकालमें मिथ्या उपदेशकोंकी सुलभता और उत्तरार्धके द्वारा, सदुपदेशकोंकी दुर्लभता बताते हैं। क्योंकि पूर्वार्धमें जो जो बातें कही हैं वे सब मिथ्या उपदेशकोंकी तरफ और उत्तराधमें जो कही हैं वे सब सदुपदेशकोंकी तरफ घटित होती हैं।
सुप्रायाः स्तनयित्नवः शरदि ते साटोपमुत्थाय ये, प्रत्याशं प्रसृताश्चलप्रकृतयो गर्जन्त्यमन्दं मुधा। .. ये प्रागब्दचितान फलढिमुदकैर्वीहीन्नयन्तो नवान्,
सत्क्षेत्राणि पणन्त्यलं जनयितुं ते दुर्लभास्तद्धनाः ॥ ४ ॥ - शरद ऋतुमें चंचल प्रकृतिके धारक और बडे आटोप-आडम्बरके साथ उठकर समस्त दिशाओंमें फैलजानेवाले तथा व्यर्थ किंतु खूब जोरसे गर्जनेवाले मेघोंका मिलना कुछ कठिन नहीं है। ऐसे मेघ बहुत ही सुलभतासे मिल सकते हैं। किंतु ऐसे मेघोंका मिलना बहुत दुर्लभ है जो कि वर्षाकालीन मेघोंसे पुष्ट हुए नवीन धान्योंसे समीचीन क्षेत्रोंको, पर्याप्त फलसंपत्ति उत्पन्न करनेकेलिये अपने जलके द्वारा अच्छी तरहसे आप्लुत कर देते हैं।
भावार्थ-इस कलिकालमें ऐसे मिथ्या उपदेशक.बहुत मिल सकते हैं जो कि खूब ही आडम्बर करने
अध्याय