Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे वानाह-'गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता' हे गौतम ! त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, 'तंजहा-सीया, उसिणा, साओसिणा' तद्यथा-शीता, उष्णा, शीतोष्णा, तथाच 'यु मिश्रणे' इति वचनाद् युवन्ति-तैजसकार्मणशरीरवन्तो जीवा औदारिकादि शरीरयोग्यस्कन्धसमुदायेन मिश्री भवन्ति यस्यां सा योनिः, सा च त्रिविधा शीतादिभेदात् , तत्र शीता-शीतस्पर्शा, उष्णा-उष्णस्पर्शा, शीतोष्णा-शीतस्पटैष्णस्पर्शरूपद्विस्वभावा चेति, एवं जोणीपयं निरवसेसंभाणिय' एवंरीत्या योनिपदंणं भते! जोणी पण्णत्ता' हे भदन्त ! जीवों की उत्पतिस्थान रूप योनि कितने प्रकारकी कही गई है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहा जोणी पण्णत्ता' योनि तीन प्रकारकी कही गई है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है - 'सीया, उसिणा, सीओसिणा' शीतयोनि, उष्णयोनि और शीतोष्णयोनि, "यु" मिश्रणे - इस मिश्रणार्थक "यु" धातु से यह योनि शब्द निष्पन्न हुआ है. “युवन्ति यस्यां सा योनिः" इस व्युत्पत्तिके अनुपार तैजस और कार्मण शरीर वाले जीव औदारिक आदि शरीर के योग्य स्कन्ध समुदाय से जिसमें मिश्रित होते हैं उसका नाम योनि है यह योनि शीतादि के भेद से तीन प्रकारकी कही गई है। शीता - शीतस्पर्शवाली, उष्णा- उष्णस्पर्शवाली और शीतोष्णा - शीतस्पर्श और उष्णस्पर्श इन दोनों स्वभाववाली। 'एवं जोणीपय निरवसेसं भाणियवं' इस प्रकारसे यहां पूछे - " कइविहाणं भंते ! जोणी पण्णत्ता ?” 8 सन ! यौना ઉત્પત્તિ સ્થાન રૂપ નિ કેટલા પ્રકારની કહી છે?
महावीर प्रभुने। उत्त२-" तिविहा जोणी पण्णधा-तंजहा" उ गौतम ! योनिना नये प्रभारी त्रय प्रा२ हा छ -सीया, उसिण!, सी ओसिणा" (1) शीतयोनि, (२) BY योनि मने (3) शीत योनि “यु" धातु ५२थी योनि शाह भन्यो छ. मन तन मिश्र) ४२वु' । म थाय छे. “युवन्ति यस्यां सा योनिः" मा व्युत्पत्ति अनुसार "ते मने अभय शरीरा જીવે ઓદારિક આદિ શરીરને યોગ્ય સ્કલ્પસમુદાયથી જેમાં મિશ્રિત થાય છે, તેનું નામ નિ છે. તેના ઉપર મુજબ શીત આદિ ત્રણ ભેદ છે શીતાશીતસ્પશવાળી, ઉણા-ઉષ્ણસ્પર્શવાળી, અને શીતેણું –શીતપર્શ અને ઉણ સ્પર્શ, આ બન્ને સ્વભાવવાળી.
"एवं जोणीपयं निरवसेसं भाणियव्वं ” सारी मही प्रज्ञापन। सूत्रना નવમાં નિ પદનું સંપૂર્ણ કથન થવું જોઈએ. પ્રજ્ઞાપનાના નવમા સૂત્રમાં આ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯