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प्रस्तावना
रहा है। यहाँ बहुत-सी पुरानी गुफाएं हैं और पांच-सौ वर्ष पुराने मन्दिर हैं । श्वेताम्बर मुनि शीलविजय ने इसका चित्रगढ़' नाम से उल्लेख किया है । बहुत सम्भव है कि एलाचार्य का निवासस्थान यही चित्रकूट हो। शीलविजयजी ने अपनी तीर्थयात्रा में चित्रगढ़, बनौसी और वंकापुर का एक साथ उल्लेख किया है । इससे सिद्ध होता है कि इन स्थानों के बीच अधिक अन्तर नहीं होगा । वंकापुर वही है जहाँ लोकसेन के द्वारा उत्तरपुराण का पूजामहोत्सव हुआ था और बनौसी (वनवासी) वही है जहाँ वंकापुर से पहले राजधानी थी। इस तरह सम्भव है कि वाटग्राम वनवासी और चित्तलदुर्ग के आस-पास होगा। अमोघवर्ष की राजधानी मान्यखेट थी जो कि उस समय कर्नाटक और महाराष्ट्र इन दो देशों की राजधानी थी और इस समय मलखेड़ नाम से प्रसिद्ध है तथा हैदराबाद रेलवे लाइन पर मलखेड़गेट नामक छोटे-से स्टेशन से ४-५ मील दूरी पर है । अमोघवर्ष श्रीजिनसेन स्वामी के अनन्य भक्तों में से था, अतः उनका उसकी राजधानी में आना-जाना सम्भव है। परन्तु वहां उनके खास निवास के कोई उल्लेख नहीं मिलते।
समय-विचार
- हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेन (द्वितीय) ने अपने हरिवंशपुराण में जिनसेन के गुरु वीरसेन और जिनसेन का निम्नांकित शब्दों में उल्लेख किया है :
"जिन्होंने परलोक को जीत लिया है और जो कवियों के चक्रवर्ती हैं, उन वीरसेन गुरु की कलंकरहित कीति प्रकाशित हो रही है। जिनसेन स्वामीने श्रीपाश्र्वनाथ भगवान् के गुणों की जो अपरिमित स्तुति बनायी है अर्थात पाश्र्वाभ्युदय काव्य की रचना की है वह उनकी कीर्ति का अच्छी तरह कीर्तन कर रही है। और उनके वर्धमानपुराणरूपी उदित होते हुए सूर्य की उक्तिरूपी किरणें विद्वत्पुरुषों के अन्तःकरण-रूपी स्फटिक-भमि में प्रकाशमान हो रही हैं ।"3
'अवभासते', 'संकीर्तयति', 'प्रस्फुरन्ति' इन वर्तमानकालिक क्रियाओं के उल्लेख से यह सिद्ध होता है कि हरिवंशपुराण की रचना होने के समय आदिपुराण के कर्ता श्रीजिनसेन स्वामी विद्यमान थे और तब तक वे
१. "चित्रगढ़ बनोसी गाम बंकापुर बीटुं शुभधाम ।
तीरव मनोहर विस्मयवंत....." २. यह प्रेमीजी की पूर्व विचारधारा थी परन्तु अब उन्होंने इस विषय में अपना निम्न मन्तब्य एक पर
मुझे लिखा है: "चित्तलदुर्ग को मैंने जो पहले चित्रकूट अनुमान किया था वह अब तक नहीं मालूम होता चित्रफूट माणकल का राजस्थान का चित्तौड़ ही होगा।हरिषेण मानिने चित्तौड़ को ही चित्रकूट लिला है। इसके सिवाय गालतेकर के अनुमान के अनुसार बाटग्राम या बटनामबटपद या बड़ौदा होगा यहां के मानतेन्द्र के मन्दिर में धवला लिखी गयी। चित्तौड़ से बड़ौदा पूर भी नहीं है। चित्रकूट प्राचीनकाल में विद्या का केन्द्र रहा है। बड़ौदा अमोषव के ही शासन में था। गुरेश्वर बह कहलाता भी था। आनतेन कोई राष्ट्रकूट राजा या सामन्त होगा, जिसके बनवाये हुए मन्दिर में वे रहे थे । इनानाम के कई राष्ट्रकूट राजा हुए हैं।" ३. "जितात्मपरलोकस्य कवीनां चक्रवर्तिनः। बीरसेनगुरोः कीतिरकलंकावभासते ॥३॥ यामिताम्युल्ये पार्वजिनेमागुणसंस्तुतिः । स्वामिनो जिनसेनस्य कीति संकीर्तयत्यती ॥४०॥ वईमानपुराणोचदादित्योक्तिनभस्तयः । प्रस्फुरन्ति गिरीशानाः स्फुटस्फटिकमित्तिषु ॥४१॥"
-हरिवंशपुराण, सर्ग १