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माविपुराण
पता नहीं चलता। वीरसेन के समयवर्ती एलाचार्य का अस्तित्व किन्हीं अन्य ग्रन्थों से समर्थित नहीं होता। हो सकता है कि धवला में स्वयं वीरसेन ने "अज्जज्जमंदिसिस्सेण......" आदि गाथा-द्वारा जिन आर्यनन्दी गुरु का उल्लेख किया है, वही एलाचार्य कहलाते हों । अस्तु ।
स्थान-विचार
दिगम्बर मुनियों को पक्षियों की तरह अनियतवास बतलाया है अर्थात जिस प्रकार पक्षियों का कोई निश्चित निवास-स्थान नहीं होता, उसी प्रकार मुनियों का भी कोई निश्चित निवास नहीं होता। प्रावड्योग के सिवाय उन्हें किसी बड़े नगर में ५ दिन-रात और छोटे ग्राम में दिन-रात से अधिक ठहरने की बाजा नहीं है। इसलिए किसी भी दिगम्बर मुनि के मुनिकालीन निवास का उल्लेख प्रायः नहीं ही मिलता है। परन्तु वे कहां उत्पन्न हुए एवं कहां उनका गृहस्थ जीवन बीता-आदि का विचार करना किसी भी लेखक की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आवश्यक वस्तु है।
निश्चित रूप से तो यह नहीं कहा जा सकता कि जिनसेन और गुणभद्र अमुक देश के अमुक नगर में उत्पन्न हुए थे और अमुक स्थान पर अधिकतर रहते थे, क्योंकि इसका उल्लेख उनकी किन्हीं भी प्रशस्तियों में नहीं मिलता। परन्तु इनसे सम्बन्ध रखने वाले तथा इनके निज के ग्रन्थों में बंकापुर, वाटग्राम और चित्रकुट का उल्लेख आता है। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि यह कर्णाटक प्रान्त के रहने वाले होंगे।
वंकापुर उस समय वनवास देश की राजधानी था और इस समय कर्नाटक प्रान्त के धारवाड़ बिले में है। इसे राष्ट्रकूट अकालवर्ष के सामन्त लोकादित्य के पिता केयरस ने अपने नाम से राजधानी बनाया था । जैसा कि उत्तरपुराण की प्रशस्ति के निम्न श्लोकों से सिड है:
"श्रीमति लोकावित्ये प्रध्वस्तप्रषितरानुसंतमसे ॥३२॥ बनवासदेशमखिलं भुजति निष्कन्टकं सुखं सुचिरम् ।
तपितृनिजनामकृते त्याते बंकापुरे पुरेष्वधिके ॥३४॥"-उ० पु०प्र० वाटग्राम कौन था और अब कहाँ पर है, इसका भी पता नहीं चलता, परन्तु वह गुजरार्यानुपालित था अर्थात् अमोघवर्ष के राज्य में था और अमोघवर्ष का राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कांचीपुर तक फैला हुआ था। अतएव इतने विस्तृत राज्य में वह कहां पर रहा होगा, इसका निर्णय कैसे किया जाये ? अमोघवर्ष के राज्य-काल शक संवत् ७८८ की एक प्रशस्ति 'एपिग्राफिमा इण्डिका', भाग ६, पृष्ठ १०२ पर मुद्रित है। उसमें लिखा है कि गोविन्दराज ने, जिनके कि उत्तराधिकारी अमोघवर्ष थे, केरल, मालवा, गुर्जर और चित्रकूट को जीता था और सब देशों के राजा अमोघवर्ष की सेवा में रहते थे। हो सकता है कि इनमें का चित्रकूट वही चित्रकूट हो जहाँ कि श्रुतावतार के उल्लेखानुसार एलाचार्य रहते थे और जिनके पास जाकर वीरसेन स्वामी ने सिद्धान्तग्रन्थों का अध्ययन किया था।
मैसूर राज्य के उत्तर में एक चित्तलदुर्ग नाम का नगर है। यह पहले 'होयसल' राजवंश की राजधानी
१. "आगत्य चित्रकूटात्ततः स भगवान् गुरोरनुज्ञानात् । वाटगामे चात्रानतेनकृतजिनगृहे स्थित्वा ॥ १७६॥"
-श्रुतावतार "इति भी वीरसेनीया टोका सूत्रावशिनी । बाटग्रामपुरे श्रीमद्गुर्जरार्यानुपालिते ॥६॥"-ज.ध