Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० १
जीवस्य षड्भावनिरूपणम् ७३
उपयोगरूपस्यभावेन्द्रियस्याऽऽत्मभावपरिणामस्य साहाय्यकरणे समर्थं द्रव्यत्वाद् द्रव्येन्द्रियत्वं व्यपदिश्यते। तत्र–निर्वृत्तिरूपं द्रव्येन्द्रियं खलु अङ्गोपाङ्गनामकर्मनिष्पादितमुपयोगात्मकभावेन्द्रियत्यविवरं-छिद्रं कर्मविशेषसंस्कृतशरीरप्रदेशरूपं निर्माणनामकर्माङ्गोपाङ्गनामकर्मप्रत्ययं मूलगुण निर्वर्तनमुच्यते । उपकरणेन्द्रियञ्च–द्विविधमपिनिष्पन्नस्य श्रोत्रादिसंज्ञकस्यनिर्वृत्तिरूपद्रव्येन्द्रियस्यानुपघाताsनुग्रहाभ्यामुपकारकं भवति ॥ २० ॥
तद्यथा-
तत्त्वार्थनिर्युक्तिः – पूर्वसूत्रे - भावेन्द्रियं द्विविधं प्ररूपितम्, सम्प्रति-द्रव्येन्द्रियं द्वैविध्येन प्ररूपयितुभाह—“दुविहं दव्विंदियं, निवत्ति-उवगरणंय--,, इति । पूर्वोक्तं द्रव्येन्द्रियं द्विविधं प्रज्ञप्तम् । - निर्वृत्तिः उपकरणञ्च । तथाच - निर्वृत्तीन्द्रिय-उपकरणेन्द्रियभेदेन द्रव्येन्द्रियं द्विविधं भवति । तत्र–स्वरूपभेदाभ्यां निर्वर्तनं निर्वृत्तिः आकारनिष्पत्तिः -- तत्तदिन्द्रियाणामाकारविशेषनिर्वृत्तिः, प्रतिविशिष्टसंस्थानोत्पत्तिरित्यर्थः । उपक्रियतेऽनेनेत्युपकरणम्, निवृत्तिरूपमिन्द्रियं निर्वृत्तीन्द्रियम् । उपकरणरूपमिन्द्रियम्—उपकरणेन्द्रियम् एतदुभयमपि पुद्गल परिणामरूपं सदपि - इन्द्रियपदव्यपदेशां लभते । एतयोरुक्तभावेन्द्रियोपयोगकारणत्वात्, उपयोगरूपस्य भावेद्रियस्य भाविन आत्मभाव - परिणामस्य । साहाय्यसम्पादने समर्थं द्रव्यं द्रव्येन्द्रियं व्यपदिश्यते ।
,
गलिक हैं और पूर्वोक्त भाव इन्द्रिय की सहायक होती हैं । इन्हें द्रव्येन्द्रिय कहने का कारण यह है कि आत्मपरिणाम रूप उपयोग भावेन्द्रिय की सहायता करने में समर्थ हैं और द्रव्य हैं । मूलगुण निर्वर्त्तना निर्वृत्ति को निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । वल अंगोपांगनामकर्म के द्वारा उत्पन्न होती है, उपयोग रूप भावोन्द्रिय का छिद्र है, कर्मविशेष के द्वारा संस्कृत शरीर का प्रदेश रूप है तथा निर्माणनामकर्म एवं अंगोपांगकर्म के निमित्त होती है ।
दोनों प्रकार की उपकरणेन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय आदि नामक निर्वृत्तिद्रव्येन्द्रिय की अनुपघात और अनुग्रह के द्वारा उपकारक होती है । अर्थात् उपकरणेन्द्रिय, निर्वृत्ति--इन्द्रिय का उपघात न हो जाय और अनुग्रह हो, इस रूप में सहायक होती है | ॥२०॥
तत्त्वार्थनियुक्ति — पूर्वसूत्र में भावेन्द्रिय के दो भेद कहे जा चुके हैं, अब द्रव्येन्द्रिय के भेदों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं- द्रव्येन्द्रिय दो प्रकार की है-- निर्वृत्ति और उपकरण । स्वरूप और भेद से रचना होने को निर्वृत्ति कहते हैं । निवृत्ति का अभिप्राय है विभिन्न इन्द्रियों का अपना-अपना आकार उत्पन्न होना । जो उपकार करे - सहायता करे वह उपकरण है | निर्वृत्ति - इन्द्रिय और उपकरणेन्द्रिय, दोनों वास्तव में पुद्गल का परिणमन हैं, फिर भी ये इन्द्रिय कहलाती हैं । इसका कारण यह है कि ये उपयोग रूप भावेन्द्रिय का कारण हैं । तात्पर्य यह है कि जो द्रव्य उपयोग भावेन्द्रिय की सहायता करने में समर्थ होता है, उसे द्रव्येन्द्रिय कहते हैं ।
१०
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧