Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका नियुक्तिश्च अ० १ . जीवस्य षड्भावनिरूपणम् ७१ न्तव्या एवं रसनेन्द्रियादिलब्धयोऽपि वक्तव्याः पयोगश्च--स्त्र विषयव्यापारः प्रणिधानरूपो वीर्यलक्षणोऽवगन्तव्यः । तथाच-तथाविधलब्धीन्द्रियकृते वक्ष्यमाणनिवृत्त्युपकर-कमेणोपयोगोभवति, तदाऽतीन्द्रियोपयोगाभावः स्यात् निवृत्त्याद्यपेक्षाभावात् अवध्यादीनामतीन्द्रियत्वादत्यन्ताभावो भवेदितिचेदुच्यतेकृतएवभवतीति । अपितु-उपयोग एवैकस्त्रितयनिमित्तो भवतीति भावः । तथाच स्पर्शनादिषु मतिज्ञानोपयोगो भवति, स चोपयोगः प्रणिधानरूपोव्यापारविशेषः । आयोगस्तावद् भावः-परिणाम इतिभावः । उक्तञ्च-प्रज्ञापनायाम् २-उद्देशके १५–इन्द्रियपदे
“कइविहाणं भंते-१ इंदियलद्धीयण्णत्ता-३ गोयमा-१ पंचविहाइंदि यलद्धीयण्णत्ता, तं जहाफासिंदियलद्धी जिभिदियलद्धी, धाणिदियलद्धी, चक्खिदियलद्धी, सोइंदियलद्धीय,
'कतिविहाणं भंते-१ इंदियउवउगद्धापण्णत्ता-३ गोयमा-१ पंचविहा इंदिय उवगद्धा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियउवउगद्धा जावफासिंदियउवउगद्धाय-,, । कतिविधा खलु भदन्त-१ इन्द्रियलब्धिः प्रज्ञाप्ता-३गौतम-१पञ्चविधाइन्द्रियलब्धिः प्रज्ञप्ता तद्यथा-स्पर्शनेन्द्रियलब्धिः, जिह्वेन्द्रियलब्धिः, घ्राणेन्द्रियलब्धिः चक्षुरिन्द्रियलब्धिः लोभेन्द्रियलब्धिश्च ।
कतिविधा खलु भदन्त-१ इन्द्रियोपयोगद्वा प्रज्ञप्ता- ? गौतम-! पञ्चविधा इन्द्रियोपयोगद्धा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-लोभेन्द्रियोपयोगद्धा, यावत्-स्पर्शनेन्द्रियोपयोगद्धा चेति ॥१९॥ स्पर्शनेन्द्रिय लब्धि कहलाता है । इसी प्रकार रसनेन्द्रिय लब्धि आदि भी कह लेना चाहिए ।
अपने विषय में व्यापार होना उपयोग कहलाता है । वह आत्मा का वीर्य रूप है।
अगर आगे कही जाने वाली निवृत्ति और उपकरण के क्रम से, लब्धीन्द्रिय के होने पर उपयोग होता है तो अतीन्द्रिय उपयोग का अभाव हो जाएगा, क्योंकि उसमें निवृत्ति आदि की आवश्यकता नहीं होती। अवधिज्ञान आदि का अभाव हो जाएगा क्योंकि वे अतीन्द्रिय हैं अर्थात् इन्द्रियों से उत्पन्न नहीं होते हैं । इस आशंका का समाधान यह है-ऐसा कोई नियम नहीं है कि सब उपयोग निवृत्ति एवं उपकरण इन्द्रिय से ही उत्पन्न हों किन्तु एक मतिज्ञान का उपयोग ही उक्त तीनों निमित्तों से होता है । इस प्रकार स्पर्शनादि में मतिज्ञान का उपयोग होता है। वह उपयोग प्रणिधान रूप व्यापार विशेष है ।
प्रज्ञापनासूत्र के १५ ३ इन्द्रियपद के दूसरे उद्देशक में कहा हैप्रश्न -भगवन् ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की है ?
उत्तर--गौतम ! पाँच प्रकार की इन्द्रियलब्धि कही है, यथा--स्पर्शनेन्द्रियलब्धि, जिहवेन्द्रियलब्धि, घ्राणेन्द्रियलब्धि, चक्षुरिन्द्रियलब्धि, श्रोत्रेन्द्रियलब्धि ।
प्रश्न--भगवन् ! इन्द्रियउपयोगद्धा के कितने प्रकार हैं ? उत्तर-गौतम ! पाँच प्रकार हैं-श्रोत्रंद्रिय-उपयोगद्धा यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-उपयोगद्धा ॥१९॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧