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प्रस्तावना
५० ३१० सू० २. तत्थ अट्ठपद - जा हिदी श्रोकडिज्जदि वा उक्कडिज्जदि वा अपयडिं सकामिज्जइ वा सो दिट्ठदिसंकमो ।
अब उक्त चूर्णि सूत्रकी तुलना कम्मपयडीके स्थितिसक्रमाधिकारकी निम्न गाथासे
कीजिए
ठिइसकमो ति बुच्च मूलुत्तरपगइतो उ जा हि ठिई ।
उचट्टिया व श्रवट्टिया व पगइ गिया वरणं ॥ २८ ॥
विषयके जानकार सहजमे ही समझ सकेंगे कि जो अर्थ 'कड्डिज्जदि' आदि पदों के द्वारा प्रगट किया गया है, वही 'उव्वट्टिया' आदि पदों का है ।
(७) अनुभाग-सक्रमाधिकार मे अनुभागसक्रमका अर्थपद इस प्रकार दिया हैपृ० ३४५, सू० २. तत्थ श्रट्टपदं । ३. अणुभागो ओकड्डिदो वि संकमो, उक्कsat faiकमो, पयडिं गी दो वि संकमो ।
अब उक्त चूर्णि सूत्रकी तुलना कम्मपयडीकी निम्न गाथा से कीजिएतत्थदुपयं उच्चट्टिया व श्रवट्टिया व अविभागा ।
भागसंकमो एस अपगई शिया वा वि ॥ ४६ ॥ (सक्रमावि०) पाठक स्वय देखेंगे कि दोनों में कितनी अधिक शब्द और अर्थगत समता है । (८) प्रदेश - संक्रमाधिकार में प्रदेशसंक्रमका स्वरूप और उसके भेद इस प्रकार बतलाये
गये हैं
पृ० ३६७, स्व० ६. जं पदेसग्गमरणपयडि णिज्जदे, जत्तो पयडीदो तं पदेसग्गं णिञ्जदि तिस्से पयडीए सो पदेससंकमो । ६. एदेण श्रट्ठपदेश तत्थ पंचविहो संकमो । १०• तं जहा । ११. उन्बेलण संकमा विज्झादसंकमा अधापवत्तसंकमा गुणसंकमो सव्वसंकमा च ।
अब इन चूर्णि सूत्रोंका मिलान कम्मपयडीकी निम्न गाथा से कीजिए --- जं दलियम पाईं जिइ सो संकमो पएसस्स ।
उव्वलो विभा हापवत्तो गुण सव्वा ॥ ६० ॥
पाठक स्वयं अनुभव करेंगे कि एक गाथामे कहे हुए तत्त्वको चूर्णिकारने किस प्रकार से ४ सूत्रोंमें कहा है । इसके अतिरिक्त प्रदेश-सक्रमाधिकारके स्वामित्व सम्बन्धी सभी चूर्णिसूत्रांका आधार कम्मपयडीके प्रदेश - संक्रमकी स्वामित्व - प्ररूपक गाथाएँ हैं, यह बात प्रस्तुत ग्रन्थके . उक्त प्रकरणमें टिप्पणियों द्वारा स्पष्ट दिखाई गई है, जो कि पाठकगण पृष्ठ ४०१ से ४०७ तककी टिप्पणियों मे दी गई कम्मपयडीकी गाथाओं के साथ वहांके चूर्णिसूत्रोंको मिलान करके भली भाँति जान सकते हैं ।
(६) स्थितिसंक्रम-अधिकार के अर्न्तगत संक्रमण किये जाने वाले कर्म - प्रदेशों की प्रतिस्थापना और निक्षेपका वर्णन आया है, वह सम्पूर्ण वर्णन कम्मपयडीके गाथाओं का आभारी है । उदाहरणके तौर पर एक उद्धरण दोनोका प्रस्तुत
उद्वर्तनापवर्तन करणकी किया जाता है