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शल्याहरणविधि
५७९
सीवन, संधान, उत्पीडन, रोपण ५७९
५७९
५८०
५८०
शस्त्रकर्मविधि
अर्शविदारण
शिराव्यधविधि
अधिकरक्तास्रवसे हानि
५८०
रक्तकी अतिप्रवृत्ति होनेपर उपाय ५८१ शुद्ध रक्तका लक्षण व अशुद्ध रक्त के
५८१
निकालने का फल वातादिसे दुष्ट व शुद्धशोणितका
लक्षण
शिराव्यधका अवस्थाविशेष
शिराव्यधके अयोग्यव्यक्ति
. अंतिमकथन
द्वाविंशः परिच्छेदः ।
मंगलाचरण व प्रतिज्ञा स्नेहादिकर्मयथावत् न होने से रोगोंकी उत्पत्ति
जीर्णघृतका लक्षण घृत जीर्ण होनेपर आहार
( xxx11f )
स्नेहपान विधि व मर्यादा वातादि दोषों में घृतपान विधि
अच्छपान के योग्यरोगी व गुण
घृतपानकी मात्रा
५८५
घृतपानका योग अयोगादिके फल ५८५
घृतके अजीर्णजन्य रोग व उसकी
चिकित्सा
सभक्तघृतपान
सद्यस्नेहनयोग
५८२
९८२
५८३
५८३
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५८५
५८६
५८६
५८६
५८६
५८७
५८७
५८७
५८७
५८८
स्नेहन योग्यरोगी
रुक्षमनुष्यका लक्षण
सम्यग्स्निग्ध के लक्षण
अतिस्निग्ध के लक्षण
अतिस्निग्ध की चिकित्सा
घृत [ स्नेह ] पान में पथ्य
स्वेदविधिवर्णनप्रतिज्ञा
५९०
स्वेदका योग व अतियोगका फल ५९० स्वेदका भेद व ताप, उष्मस्त्रेद लक्षण५९०
५९१
५९१
बन्धन, द्रव, स्वेदलक्षण चतुर्विधस्वेदका उपयोग स्वेदका गुण व सुस्वेदका लक्षण स्वेदगुण
५९१
५९१
स्वेद के अतियोगका लक्षण
५९२
स्वेदका गुण
५९२
वमनविरेचन विधिवर्णनप्रतिज्ञा
५९२
दोषोंके बृंहण आदि चिकित्सा ५९३ संशोधन में वमन व विरेचनकी
५.८
५८८
५८९
५८९
५८९
५८९
वमन में भोजनविधि
संभोजनीय अथवा वाम्यरोगी
मनका काल व औषध
वमनविरेचनके औषधका स्वरूप
बालकादिक के लिये वमनप्रयोग
वमनविध
सम्यग्वमनके लक्षण
मनपश्चात्कर्म
प्रधानता ५९३
५९३
५९३
५९४
५९४
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५९५
५९५
५९५
वमनका गुण
मनके बाद विरेचनविधान
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