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गर्भोत्पत्तिलक्षणम्
(१७)
अथ द्वितीयः परिच्छेदः ।
मंगलाचरण और प्रतिज्ञा अशेषकर्मक्षयकारणं जिनं । प्रणम्य देवासुरवृंदवंदितम् । ब्रवीम्यतस्वास्थ्यविचारलक्षणं । यथोक्तसल्लक्षणलक्षितं बुधैः ॥१॥
भावार्थ:--देव व असुरोंके द्वारा पूजित, समस्त कर्मोको नाश करनेके लिये कारण स्वरूप श्री जिनेंद्र भगवानको नमस्कार कर महर्षियों द्वारा कथित लक्षणों से लक्षित स्वास्थ्यका विचार कहेंगे ॥ १॥
___ स्वास्थ्यका भेद। अथेह भव्यस्य नरस्य सांप्रतं । द्विधैव तत्स्वास्थ्यमुदाहृतं जिनैः । प्रधानमाद्यं परमार्थमित्यतो द्वितीयमन्ययवहारसंभवम् ॥ २॥
भावार्थ:-भव्यात्मा मनुष्यको जिनेंद्रने पारमार्थिक, व्यवहारके रूपसे दो प्रकारका स्वास्थ्य बतलाया है । उसमें पारमार्थिकस्वास्थ्य मुख्य है व्यवहार स्वास्थ्य गौण है ॥ २॥
परमार्थस्वास्थ्यलक्षण ।। अशेषकर्मक्षयजं महाद्भुतं । यदेतदात्यंतिकमवितीयम् । अतींद्रियं पार्थितमर्थवेदिभिः । तदेतदुक्तं परमार्थनामकम् ॥ ३ ॥
भावार्थ:-आत्माके संपूर्ण कर्मोंके क्षयसे उत्पन्न, अत्यद्भुत, आत्यंतिक व अद्वितीय, विद्वानोंके द्वारा अपेक्षित, जो अतींद्रिय मोक्षसुख है उसे पारमार्थिक स्वास्थ्य कहते हैं ॥ ३ ॥
व्यवहारस्वास्थ्यलक्षण । समाग्निधातुत्वमदोपविभ्रमो । मलक्रियात्मेंद्रियसुगसन्नता । मनःप्रसादश्च नरस्य सर्वदा । तदेवमुक्तं व्यवहारज खलु ॥ ४॥
भावार्थ:--मनुष्यके शरीरमें सम आग्नका रहना, सम धातुका रहना, वात आदि विकार न होना, मलमूत्रका ठीक तौरसे विसर्जन होना, आत्मा, इंद्रिय व मनकी प्रसन्नता, रहना ये सब व्यावहारिक स्वास्थ्य का लक्षण है ॥ ४ ॥
१—समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेंद्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ।
( वाग्भट)
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