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भेषजकीपद्रवचिकित्साधिकारः।
(६०१)
यच्चामानमतिप्रवाहणमिति व्यापच्च तासां यथा- ।
संख्यं लक्षणतच्चिकित्सितमतो वक्ष्यामि संक्षेपतः ॥५४॥ ..... भावार्थः-वमन, विरेचन के वर्णनप्रकरण में पहिले [ वैद्य रोगी व परिचारक के प्रमाद अज्ञान आदि के कारण वमन विरेचन के प्रयोगमें किसी प्रकार की त्रुटि होने पर ] पंद्रह प्रकार की व्यापत्तियां उत्पन्न होती हैं ऐसा कहा है। अब उन के प्रत्येक के लक्षण व चिकित्सा को कहेंगे । उनमें मुख्यतया पहिली व्यापत्ति वमन का नीचे चला जाना, विरेचन का ऊपर आ जाना है। यह इन दोनों की पृथक २व्यापत्ति है। [आगेकी व्यापत्तियां वमन विरेचन इन दोनों के सामान्य हैं अर्थात् जो व्यापत्ति वमन की है वही विरेचन की भी है ] दूसरी व्यापत्ति औषधोंका शेष रह जाना ३ औषधका पच जाना, ४ अल्पप्रमाणमें दोषों का निकलना ५ अधिक प्रमाण में दोषों का निकल जाना. ६ वातजशूल उत्पन्न होना, ७ जीवादान [ जीवनीय रक्त आदि निकलना], ८ अयोग ९ अतियोग, १० परिस्राव, ११ परिवर्तिका, १२ हृदय संचार [ हृदयोपसरण ] १३ विबंध, १४ आध्मान,१५अतिप्रवाह (प्रवाहिका) ये पंद्रह व्यापत्तियां है। यहांसे आगे इन व्यापत्तियोंके, क्रमशः पृथक् २ लक्षण व चिकित्सा को संक्षेपसे कहेंगे ॥५३॥५४॥
विरेचनका ऊर्ध्वगमन व उसकी चिकित्सा. यस्यावांतनरस्य चोल्वणकफस्यामांतकस्यातिदुगंधाहृयमीतप्रभूतमथवा दत्तं विरेकौषधम् ॥ ऊर्ध्व गच्छति दोषवृद्धिरथवाप्यत्युग्ररोगोद्धति ।
तं वांत परिशोधयेदतितरां तीक्ष्णैर्विरेकोषधैः ।। ५५ ॥ भावार्थ-जिन को वमन नहीं कराया हो, कफ का उद्रेक व आम से संयुक्त हो तो ऐसे मनुष्यों को विरेचन औषधप्रयोग किया जाय तो वह ऊपर जाता है अर्थात् वमन हो जाता है । अथवा विरेचनौषध, अत्यंत दुर्गंधयुक्त व अहृद्य [ हृदय को अप्रिय ] हो, अथवा औषध, प्रमाण में अधिक पिलाया गया हो तो भी वमन होजाता है। वह ऊपर गया हुआ विरेचन, शरीर में दोषों की वृद्धि करता है, अथवा भयंकर रोगों को उत्पन्न करता है। ऐसा होने पर उसे वमन कराकर अत्यंत तीक्ष्ण विरेचन औषधियों से फिर से विरेचन कराना चाहिये ॥ ५५॥
वमनका अधोगमन व उसकी चिकित्सा.. यस्यात्यंतबुभुक्षितस्य मृदुकोष्ठस्यातितीक्ष्णानलस्यात्यंत वमनौषधं स्थितिमतोपेतं ह्यधो गच्छति ।।
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