Book Title: Kalyankarak
Author(s): Ugradityacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govind Raoji Doshi Solapur

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Page 823
________________ कल्याणकारके अथवा प्रकीर्णकोषधेष्वपि मांसमौषधं न भवत्येव । तत्र द्विविधमौषधमित्युक्तम् संशमनसंशोधनक्रमेण । न तावत्संशोधनं च भवत्यूर्वभागाधोभागोभयतस्संशोधनशक्त्यभावात् । संशमनमपि मांसं न भवति, स्पृष्टरसाभावात् । स्पृष्टरसं हि द्रव्यं संशमनाय कल्प्यते । यथा मधुराग्ललवणाः वातघ्नाः, मधुरतिक्तकपायाः पित्तनाः, कटुतिक्तकपायाः श्लेष्मनाः । अथवा मांस लवणं नारित, लवणसंयोगभक्षणात् । आम्लरसोपि नास्ति आम्ल. संपाचनात् । तथैव संभारसाकारार्हत्वात् कटुतिक्तकषायरसाश्च न संभवत्येव । तथा मांस मधुरमपि न भवति, मधुरस्य लवणेनात्यतविरोधित्वात् अथवा महापाठे मांसपाको भिहितः स्नेहगोरसधान्याम्ल फलाम्लकटुकैस्सह ।। स्विनं मांसं च सर्पिष्कं बल्यं रोचनबृंहणम् ॥ इति द्रव्यसंयोगादेव मांसस्य बलकरणत्वं चेत्तदान्येषामपि द्रव्याणां संस्कारविशेषाद्वलवृष्यरुचिकरत्वं दृष्टमिष्टं चेति मांसमेव शोभनं भवतीत्येवं तन्न । तथा लवणतसंभारोदनविरहितस्य मांसस्य परिदूषणमपि श्रूयते ।। प्रकीर्णक औषधों में भी मांस को औषधि के रूप में ग्रहण नहीं किया है । प्रकीर्णक औषध संशमन व संशोधन के भेद से दो प्रकार कहे गए हैं । वह मांस संशोधन औषध तो नहीं हो सकता है। क्यों कि ऊर्वभाग, अधोभाग व उभय भाग से संशोधन करने का सामर्थ्य उस मांस में नहीं है । संशमन भी मांस नहीं हो सकता है। उस में कोई भी खास विशिष्ट रस न होनेसे । जिस पदार्थ में खास विशिष्ट रस रहता है वही संशमन के लिए उपयोगी है । जैसे मधुर, आम्ल व लवणरस वातहर है। मधुर, तिक्त व कषायरस पित्तहर हैं । कटु, तिक्त व कषायरस कफहर है । अथवा मांस लवणरस भी नहीं है। क्यों कि उसे लवणसंयोग कर ही भक्षण करना पडता है । आम्लरस भी वह नहीं है क्यों कि शरीरस्थ आम्ल का वह पाचन कर देता है अर्थात् वई आम्लविरोधी है । इसी प्रकार विशिष्ट संस्कार योग्य हानेसे कटुतिक्त कषायरस भी उस में नहीं होते । एवं मांस मधुर भी नहीं है । क्यों कि मधुर का तो लवण के साय अत्यंत विरोध है । मांस का उपयोग तो लवण के साथ किया जाता है । अथवा महापाठ में मांसपाक भी कहा गया है। तेल, गोरस, धान्याम्ल, फलाम्ल व कटुक रस के साथ संस्कृत एवं घृतसहित मांस बलकर है, रुचिकर एवं शरीरपोषक है। . इस प्रकार अन्य द्रव्यों के संयोग से ही मांस में बलकर व पोषक शक्ति है, ऐसा कहेंगे तो हम [ अन्य ] भी कह सकते हैं कि अन्य द्रव्यों में भी संस्कार विशेष से ही बलकरत्व, रुचिकरत्व व पोषकत्व आदि गुण देखे गए हैं । इसलिए मांस ही उन पदार्थो से अच्छा है, ऐसा कहना ठीक नहीं है। लवण, घृत व संभारसंस्कार से रहित मांस का दूषण भी आपके यहां सुना जाता है। जैसे .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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