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हिताहिताध्यायः ।
ग्रंथ अध्ययन फल ।
यो वा वेत्ति जिनेंद्रभाषितमिदं कल्याणसत्कारकम् । सम्यक्त्वोत्तरमष्टसत्प्रकरणं (2) संपत्करं सर्वदा ॥ सोऽयं सर्वजनस्तुतः सकलभूनाथार्चितांत्रिद्वयः । साक्षादक्षयमोक्षभाग्भवति सद्धर्मार्थकामाधिकान् ॥ इतिहास संदर्भ |
ख्यातः श्रीनृपतुंगवल्लभमहाराजाधिराजस्थितः । मोरिसभांवरे बहुविधप्रख्यातविद्वज्जने ॥ मांसाशिनकरेंद्रताखिलभिषग्विद्याविदामग्रतो । मांसे निष्फळतां निरूप्य नितरां जैनेंद्रवैद्यस्थितम् || इत्यशेषविशेषविशिष्टदुष्टपिशिताशिवैद्यशास्त्रेषु मांसनिराकरणार्थमुप्रादित्याचार्यैनृपतुंगवल्लभेंद्रसभायामुद्घोषितं प्रकरणम् । आरोग्यशास्त्रमधिगम्य मुनिर्विपश्चित् । स्वास्थ्यं स साधयति सिद्धसुखैकहेतुम् ॥
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इस प्रकार इस जिनेंद्रभाषित कल्याणकारकको, जो अनेक उत्तमोत्तम प्रकरणों से संयुक्त व संपत्कर है, जानता है वह इह लोक में धर्मार्थ काम पुरुषार्थी को पाकर एवं सर्वजनबंध होकर, संपूर्ण राजाओं से पूजितपदकमलों को प्राप्त करते हुए [ त्रिलोकाधिपति ] साक्षात् मोक्ष का अधिपति बनता है ।
प्रसिद्ध नृपतुंगवल्लभ महाराजाधिराज की सभा में, जहां अनेक प्रकार के उद्भट विद्वान् उपस्थित थे, एवं मांसाशनकी प्रधातता को पोषण करनेवाले बहुत से आयुर्वेद के विद्वान थे, उन के सामने मांस की निष्फलता को सिद्ध कर के इस जैनेंद्र वैद्य ने विजय पाई है ।
इस प्रकार अनेक विशिष्टदुष्टमलिभक्षणपोषक वैद्य शास्त्रों में मांसनिराकरण करने के लिए श्री उग्रादित्याचार्य द्वारा नृपतुंगवल्लभराजेंद्र की सभा में उद्घोषित यह प्रकरण है ।
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आयुर्वेदाध्ययनफल.
जो बुद्धिमान् मुनि इस आरोग्यशास्त्र का अध्ययन कर उस के रहस्य को समझता है, वह मोक्षसुख के लिए कारणीभूत स्वास्थ्य को साध्य कर लेता है । जो इसे
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