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( ७३४ )
कल्याणकारके
बर्द्धनसंबंधाभावात् । अपसिद्धांतत्वाच्च । तस्मादसादिक्रमेणैव शरीराभिवृद्धिनिर्दिष्टा । तथा भैषज्यसाधनं चोक्तं । पांचभौतिकस्य चतुर्विधस्याहारस्य षड्सोपेतस्य अष्टविध. वीर्यस्य द्विविधवीर्यस्य वाऽनेकगुणोपयुक्तस्य सम्यक्परिणतस्य पयस्तेजोगुणभूतस्य सारः परमसूक्ष्मः स रस इत्युच्यते । क्षारपाणिनाप्युक्तम् । रसो भूत्वा द्वैधी भवति स्तन्यं शोणितं च। शोणितं भूत्वा द्वैधी भवति रजो मांसं च । मांसं च भूत्वा द्वैधी भवति, सिरा मेदश्च । मेदो भूत्वा द्वैधी भवति स्नायस्थि च । अस्थि भूत्वा द्वैधी भवति वसा मज्जा च । मजा भूत्वा द्वैधी भवति, मज्जा चैव शुक्रं च । शुक्राद्गर्भस्संभवति इति । तथा चोक्तम् ॥
रसादक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रवर्तते ।
मेदसांस्थि ततो मज्जा तस्याश्शुक्रं ततः प्रजा ॥ इति एवं धातूपधातुनिष्पत्तिरातैरुपदिष्टा विशिष्टैस्तत्वदृष्टिभिद्यैरन्यैश्चाप्यतिकुशलैः रसवेदिभिरिति ॥ अथवा मांसभक्षकाणामेव शरीरेषु मांसाभिवृद्धिरितरेषां न भवत्येव, तन्न घटामटाट्यते । कथमिति चेत्तदभक्षिणामृषीणामन्येषां पुरुषविशेषाणां स्त्रीणां वापि तच्चा
प्रसंग आवेगा । अर्थात् सिद्धांतविरुद्ध विषय होगा । इसलिए रसादिक्रम से ही शरीराभिवृद्धि होती है। मांस स्वरूप से नहीं। इसी प्रकार औषध साधन भी कहा गया है । पंचभौतिक, चतुर्विधाहार, षड्स, द्विविध अथवा अष्टविधर्वार्ययुक्त, अनेक गुणयुक्त, पदार्थ अच्छी तरह शरीर में परिणत होकर जो उस का परम सूक्ष्मतर सार है उसे रस कहते हैं । क्षारपाणि ने भी कहा है । रस होकर उस का द्वैधीभाव स्तन्यक्षीर व रक्त के रूप में होता है । रक्त होकर उस का द्वैधीभाव रज व मांस के रूप में होता है । मांस होकर उस का द्वैधीभाव सिरा व मेद के रूप में होता है । मेद होकर उस का द्वैधीभाव स्नायु व हड्डी के रूप में होता है । हड्डी होकर उसका द्वैधीभाव वसा व मजा के रूप में होता है । मन्जा होकर उसका द्वैधीभाव मज्जा के ही रूप में व शुक के रूप में होता है । शुक्र से गर्भ की उत्पत्ति होती है । इसी प्रकार कहा भी है
___ रस से रक्त की उत्पत्ति होती है। उस से मांस बनता है। मांस से मेद बनता है। मेद से हड्डी, हड्डी से मज्जा बनता है । मजा से शुक्र व उस से संतान की उत्पत्ति
होती है ।
इस प्रकार धातु उपधातुओं की निष्पत्ति विशिष्ट तत्वदर्शी वैद्य व अन्य अतिकुशल रस वेदी आप्तों के द्वारा कही गई है। अथवा मांस भक्षकों के शरीर में ही मां मांसाभिवृद्धि के लिए कारण है, अन्य जीवों के शरीर में नहीं, ऐसा कहें तो यह घता
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