Book Title: Kalyankarak
Author(s): Ugradityacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govind Raoji Doshi Solapur

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Page 832
________________ हिताहिताध्यायः । शोषिणे बर्हिणं दद्यात् बर्हिशब्देन चापरान् । गृद्धानुलूकांश्चाषां विधिना सुप्रकल्पितान् || काकांस्तित्तिरिशब्देन वर्मिशब्देन चोरगान् भृष्टान्मत्स्योत्रशब्देन दद्याद्डूपदान्यपि ॥ लोपाकान् स्थूलनकुलान् विदलांश्चोपकल्पितान् । श्रृगाळशाबांश्च भिषक् शशशब्देन दापयेत् ॥ सिंहानृक्षांस्तरंश्च व्याघ्रानेवंविधांस्तथा । मांसादान्मृगशब्देन दद्यान्मांसाभिवृद्धये ॥ मांसानि यान्यनभ्यासादनिष्टानि प्रयोजयेत् । तेषूपधा सुखं भोक्तुं शक्यते तानि वै तथा ॥ जानज्जुगुप्सन्नैवाद्यात् जग्धं वा पुनरुल्लिखेत् । तस्माच्छद्मोपसिद्धानि मांसान्येतानि दापयेत् ॥ Jain Education International शोषरोगियों के लिए मांसभक्षक प्राणियों के मांसवर्धक मांस को विधिप्रकार सेवन करावें । उन्हें मोर के मांस को खिलावें । बर्हि [ मयूर ] शह्न से और भी गृद्ध, उल्लू, नीलकंठ आदि के मांसका भी ग्रहण कर उन की विधिपूर्वक तैयार कराकर देवें । इसी प्रकार तीतर के मांस को भी खिलावें । तित्तिर शब्द से कौवे के मांसको भी ग्रहण करना चाहिये । वर्मिं मत्स्य [ मछली ] के मांस को भी देवें । वर्मि [ मत्स्य भेद ] शब्द से सर्पों का भी ग्रहण करना चाहिये । मत्स्य के अंत्रको भी खिलाना चाहिये । इसी प्रकार गंडूपद [ कीट विशेष ] को भी खाने देना चाहिये । इसी प्रकार खरगोश के मांस को भी देना चाहिये । शश [ खरगोश ] शब्द से सियार, स्थूल नौल, बिल्ली, सियार के बच्चे आदि के मांस का ग्रहण करना चाहिये । इसी प्रकार मांसभक्षक प्राणियों के मांस को भी उस रोगी को खिलाना चाहिये । इससे सिंह, राछ, तरक्षू [ कांटेदार शरीरवाला जंगलीप्राणिविशेष ] व्याघ्र आदि के मांस का एवं हाथी गंडा आदि प्राणियों के मांस का भी प्रयोग करना चाहिये । जिस से उस रोगी के शरीर में मांस की वृद्धि होती है । यदि किसी को मांस खाने का अभ्यास न हो एवं उस से घृणा करता हो तो उस के सामने मांस की प्रसंशाकर उसे मांस के प्रति प्रेम को उत्पन्न करना चाहिये जिस से वह रोगी उस मांस को सुखपूर्वक खासकेगा । कदाचित् उसे मालुम होजाय कि यह कौवा, बिल्ली, गीदड आदि का मांस है, पहिले तो वह घृणा से खाया ही नहीं या किसी तरह जबर्दस्ती खावे तो खाते ही वमन करेगा । उस के हृदय में घृणा उत्पन्न न हो इसके लिए अन्य प्राणियों के मांस का नाम कहकर देना ( ७३९ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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